मनुष्य का जो मन है, वह पहले चित्रों की भाषा में सोचता है, फिर शब्दों की भाषा विकसित होती है। इसे आप यूं भी समझ सकते हैं कि जब आप सपने देखते हैं तो चित्रों की भाषा में देखते हैं, क्योंकि सपने में आप अपनी शिक्षा-दीक्षा सब भूल जाते हैं। जो भाषा आपको सिखाई गई प्रतीकों की, संकेतों की, गणित की, व्याकरण की, वह सब आप भूल जाते हैं। सपने में आप फिर प्राथमिक यानी अज्ञानी हो जाते हैं।
सपने में फिर उन पुरानी अवस्थाओं में पहुंच जाते हैं, जहां हम चित्रों से सोच सकते हैं। दुनिया की जो प्राचीनतम भाषाएं हैं, वह चित्रों वाली हैं। चीन में अभी भी इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है। इनके पास अभी भी वर्णाक्षर नहीं हैं। इसलिए इनकी भाषा बहुत कठिन है, हर चीज का चित्र, बहुत लंबी प्रक्रिया है। अगर चीनी भाषा को किसी को पढ़ना हो, तो कम से कम दस वर्ष तो लग ही जाएंगे और तब भी प्राथमिक ज्ञान ही होगा। कम से कम एक लाख शब्द-चित्र तो याद होने ही चाहिए वह भी साधारण ज्ञान के लिए।
बच्चों का मन भी प्राचीनतम मन है। वह चित्रों से समझते हैं। इसलिए हमें कहना पड़ता है, ग गणेश का। ग से गणेश का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि ग गधे का भी उतना ही है। लेकिन गणेश का या गधे का चित्र हम बनाएं, तो बच्चे को ग समझाना आसान हो जाता है। पुरानी किताबों में गणेश का चित्र होता था, नई किताबों में गधे का चित्र है, इसलिए मैं कह रहा हूं। क्योंकि सेक्युलर है गवर्नमेंट, धर्म-निरपेक्ष है राज्य।
गणेश का चित्र नहीं बना सकते! पुरानी किताबों में ग गणेश का होता था, नई किताबों में ग गधे का है। ग को समझाना है तो गणेश को याद रखना पड़ता है। फिर जब बच्चा समझ लेगा, तो गणेश को छोड़ देगा, ग रह जाएगा। अगर बाद में भी आप पढ़ते वक्त हर बार कहें कि ग गणेश का, तो फिर पढ़ना मुश्किल हो जाएगा।
फिर गणेश को भूल जाना पड़ेगा और ग को याद रखना पड़ेगा। लेकिन ग को याद करने में पहले गणेश का उपयोग लिया जा सकता है, लिया जाता है। और अब तक कोई शिक्षा- पद्धति विकसित नहीं हो सकी, जिसमें हम बिना चित्रों का उपयोग किए बच्चों को शब्दों का बोध करा दें।
कृष्ण ने मौलिक बात कही थी कि कि मैं समस्त आत्माओं में आत्मा हूं। मैं समस्त आत्माओं का केंद्र हूं। मैं समस्त हृदयों का हृदय हूं। मेरा ही विस्तार है सब कुछ- आदि भी, मध्य भी, अंत भी मैं हूं। लेकिन वह बहुत गहरा भाव है और अर्जुन को भी पकड़ में नहीं आएगा। इसलिए कृष्ण अब चित्रों का प्रयोग करते हैं, और चित्रों के माध्यम से उस भाव की तरफ इशारा करते हैं। अर्जुन जो चित्र समझ सकेगा, निश्चित ही उनका ही उपयोग किया गया है।