कोलकाता, 19 मई (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल में सत्ता विरोधी लहर और विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर अभियान को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी ने प्रदेश में विधानसभा चुनाव में जोरदार जीत दर्ज की, वहीं वाममोर्चा और कांग्रेस को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है।
कुल 294 सीटों वाली विधानसभा में तृणमूल ने 211 सीटों पर जीत दर्ज की, जो दो तिहाई बहुमत (196 सीट) से कहीं अधिक है, जबकि साल 2011 में हुए चुनाव में उसे 184 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस ने 44, माकपा ने 26, भाजपा को तीन, फारवर्ड ब्लाक को दो, भाकपा को एक, आरएसपी को तीन, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को तीन और एक सीट निर्दलीय को हासिल हुई।
साल 1998 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी का गठन करने वाली ममता बनर्जी ने बंगाल की सत्ता में वर्षो से काबिज मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका था। उस वक्त उन्होंने भवानीपुर से न केवल 25 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी, बल्कि सन् 1962 के बाद पहली बार राज्य में किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनी।
पश्चिम बंगाल चुनाव में भारी जीत पर ममता बनर्जी ने कहा कि विपक्षी दलों के झूठ व निंदा पर आधारित अभियान को लोगों ने नकार दिया।
उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “लोगों ने ऐसे अभियान को पसंद नहीं किया। हमारे खिलाफ हर प्रकार का गठबंधन था। लेकिन लोगों ने आखिरकार अपनी इच्छा जताई।”
अंतिम परिणाम के मुताबिक, वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन तीन अंकों का आंकड़ा नहीं छू सका। गठबंधन दल केवल 77 सीटों पर निपट गया। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश में वाम मोर्चा से बेहतर कांग्रेस का प्रदर्शन रहा। उसने 44 सीटें जीतीं, जबकि वाम मोर्चा केवल 32 सीटें ही पा सका। गठबंधन समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी जीत दर्ज की।
वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन की हार का असर मुख्यमंत्री के अनौपचारिक उम्मीदवार सूज्र्य कांत मिश्रा पर भी पड़ा, जो नारायणगढ़ सीट से 13 हजार मतों से चुनाव हार गए। वे साल 1991 से ही जीतते आ रहे थे।
पार्थ चटर्जी, अमित मित्रा तथा ज्योतिप्रियो मल्लिक सहित तृणमूल के अधिकांश मंत्रियों ने जीत दर्ज की। उपेन विश्वास सहित पांच मंत्रियों को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। ये वही उपेन विश्वास हैं, जिन्होंने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव पर शिकंजा कसा था। उपेन उस वक्त केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी थे।
हाल में नारद स्टिंग ऑपरेशन के एक वीडियो फुटेज में कथित तौर पर पैसे लेते दिखाए गए तृणमूल के छह में से पांच विधायक जीत दर्ज करने में सफल रहे।
शारदा चिट फंड कांड में जेल में बंद मदन मित्रा चुनाव हार गए। वे कमरहटी सीट पर माकपा के मानस मुखर्जी से चुनाव हारे।
कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस ने सभी 11 सीटों पर जीत दर्ज की। इसने दक्षिण 24 परगना, हावड़ा, हुगली, कूच बेहर तथा जलपाईगुड़ी जिलों में विरोधियों को धूल चटा दी।
गठबंधन के लिए मुर्शिदाबाद व मालदा जिला मुफीद साबित हुआ। मुर्शिदाबाद में गठबंधन ने 18 सीटें जीतीं जबकि तृणमूल को मात्र चार सीटें मिलीं। मालदा जिले में तृणमूल का खाता नहीं खुला, जबकि गठबंधन ने 11 सीट व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक सीट जीती।
तृणमूल दार्जिलिंग में भी खाता खोलने में नाकामयाब रहा, जहां गठबंधन तथा जीजेएम ने तीन-तीन सीटें जीतीं।
भाजपा के लिए यह चुनाव मुफीद साबित हुआ। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने खड़गपुर सदर सीट पर कांग्रेस के ज्ञान सिंह सोहनपाल को हरा दिया। वे सन् 1982 से लगातार जीत दर्ज आ रहे थे।