संत का संबंद्ध योग से है.अब इसके लिए योग को जानना जरूरी है इस स्थान पर आखिर योग है क्या.क्या है कुण्डलनी और उसका जागरण?
1. मूलाधार चक्र :
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह ‘आधार चक्र’ है। 99.9%
लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
3. मणिपुर चक्र :नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस
कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी
रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो
जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना
जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
4. अनाहत चक्र-
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से
सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील
व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार,
इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
5. विशुद्ध चक्र-
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर
यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत
होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।6. आज्ञाचक्र :
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां
ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है
लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी
शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।
7. सहस्रार चक्र :
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम
का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को
संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।
प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।
कुण्डलनी जागरण हेतु प्रमुख है मूलाधार जिसके बिना इस प्रक्रिया का आरम्भ नहीं किया जा सकता है .
शरीर के अन्दर जिस दिव्य ऊर्जा शक्ति की बात की गई है, उस ऊर्जा शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। यह कुण्डलिनी शक्ति शरीर में जहां सोई हुई अवस्था में रहती है उसे मूलाधार चक्र कहते हैं। मूलाधार चक्र जननेन्द्रिय और गुदा के बीच स्थित है। मनुष्य के अन्दर इस ऊर्जा शक्ति की तुलना ब्रह्माण्ड की निर्माण शक्ति से की जाती है। यही चक्र पूरे विश्व का मूल है। यह शक्ति जीवन की उत्पत्ति, पालन और नाश का कारण है। इसका रंग लाल होता है तथा इसमें 4 पंखुड़ियों वाले कमल का अनुभव होता है जो पृथ्वी तत्व का बोधक है। मनुष्य के अन्दर पृथ्वी के सभी तत्व मौजूद है। चतुर्भुज का भौतिक जीवन में बड़ा महत्व है, चक्र में स्थित यह 4 पंखुड़ियां वाला कमल पृथ्वी की चार दिशाओं की ओर संकेत करता है। मूलाधार चक्र का आकार 4 पंखुड़ियों वाला है अर्थात इस पर स्थित 4 नाड़ियां आपस में मिलकर इसके आकार की रचना करती है। यहां 4 प्रकार की ध्वनियां- वं, शं, शं, सं जैसी होती रहती है। यह आवाज (ध्वनि) मस्तिष्क एवं हृदय के भागों को कंपित करती रहती है। शरीर का स्वास्थ्य इन्ही ध्वनियों पर निर्भर करता है। मूलाधार चक्र रस, रूप, गन्ध, स्पर्श, भावों व शब्दों का मेल है। यह अपान वायु का स्थान है तथा मल, मूत्र, वीर्य, प्रसव आदि इसी के अधीन है। मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति, परमचैतन्य शक्ति तथा जीवन शक्ति का पीठ स्थान है। यह मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास, मानसिक शक्ति का विकास और चैतन्यता का मूल है।
पुरुष एवं स्त्रियों में लिंग रस,रूप,गंध ,स्पर्श भावों एवं शब्दों के मेल की जाग्रत अवस्था होती है लेकिन किन्नरों में यह नहीं होता उनकी लिंगीय व्यवस्था में किसी किस्म की ऊर्जा नहीं होती
पौराणिक आख्यानों में रामायण के अयोध्या कांड में राम द्वारा स्त्री-पुरुष दोनों को लौट जाना कहने का संदेश- जथा जोगु करि विनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा ।। नारि पुरुष लघु मध्य बड़ेरे। सब सनमानि कृपा निधि फेरे ।। हिजड़ों के लिए यहां कुछ नहीं कहा जाता । चौदह वर्ष बाद राम का लौटना और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान देना ‘जब कलयुग आएगा, तब तुम लोग राज करोगे’ । रामायण जैसा प्रसिद्ध आख्यान उनके अस्तित्व की प्रमाणिकता को सुनिश्चित करता है । इसी तरह पौराणिक आख्यान महाभारत की कथा में शिखंडी और अर्जुन का बृहन्नला रूप आदर्श माना गया है । यमदीप उपन्यास में नीरजा माधव मानवी और आनंद कुमार के माध्यम से इनके इतिहास की गहराई में जाती हैं ‘अंग्रेजी में इनके लिए ‘हरमोफ्रोडाइट्स’ स्त्री-पुरुष लक्षणों वाला और ग्रीक में इन्हीं लक्षणों से युक्त हरमोफ्रोडाइट्स’ की मूर्ति को स्त्री-पुरुष प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक बताती हैं । मिस्र, बेबीलोन और मोहनजोदड़ो की सभ्यता में इनका प्रमाण मिलता है । संस्कृत नाटकों में इनका जिक्र है कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि राजा को हिजड़ों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए । इसी प्रकार गुलाम मंडी में सामाजिक हैसियत के अलावा उनकी राजनैतिक भूमिका को बताया गया। ‘राजाओं के राज में हिजड़े बहादुर योद्धाओं के दल में शामिल किए जाते थे । स्त्री और पुरुष कुछ भी बन सकने की उनकी क्षमता उन्हें राजकीय जासूसों के पद भी दिलवाती थी । दरबार हो या मंदिर, वे अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करके वाह-वाही भी लूट सकते थे । इनाम-इकराम भी कमाते थे । बादशाहों के हरम में सुरक्षाकर्मी होते थे, औरतों के साथ सेक्स न करना उनकी कमी नहीं, खूबी थी । हिजड़ों का तिरस्कार तो अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुआ’ । चारों उपन्यास की कथावस्तु हिजड़ा समुदाय के मनुष्य होने का प्रमाण प्रस्तुत करती है और समाज में उनकी निर्धारित भूमिकाओं की आलोचना करती है । जहाँ माना गया कि यह परिवार, समाज और राजनीति में उपयोगी भूमिका नहीं निभा सकता है ।
मानवता की दृष्टि से किन्नर का आदर -सम्मान उसका पैदायशी अधिकार है लेकिन शारीरिक बनावट की भिन्नता की वजह से किन्नर की कुण्डलनी जाग्रत नहीं हो सकती अतः किन्नर कभी संत नहीं बन सकता ………………
सिंहस्थ में किन्नर को संत का दर्जा दिलाने की कोशिश करने वाले ऋषि अजयदास एवं सामजिक कार्यकर्ता भावना गुरुदासानी की नियत एवं योग्यता की पड़ताल हम करेंगे .समझेंगे की इस अखाड़े के पीछे उनकी मंशा क्या है,आपके सामने रखेंगे अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी जी के विचार क्या है ……..
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