उज्जैन से अनिल सिह– अपने उतरते दिनो पर सिन्हस्थ मेले का रंग शबाब पर आता जा रहा है.शासन-प्रशासन ने अथक मेहनत की लेकिन चाही जनता नहीं आमंत्रित कर पाया. आज जब किसी प्रकार के प्रयास नहीं हो रहे वह आलम है जिसे देख कर महाकुम्भ का स्वरूप जाना जा सकता है.
जिधर देखो आस्था के रंग में मस्त जन सैलाब दिन हो या रात एक जैसा सैलाब बह्ता चला जा रहा है.किसी को किसी के सामिप्य का होश नहीं,सब महाकाल के संसर्ग की मस्ती में मदहोश चले जा रहे कहाँ किधर किसी को अपने से फुर्सत ही नहीं.
बच्चे-बुजुर्ग सब समरस हो नदी के उस बहाव की तरह बहे जा रहे जो उज्जैन में खो चुकी है. इस उम्मीद के साथ फिर से उसकी कल-कल उज्जैन में सुनायी दे.