भोपाल, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में भारतीय संस्कृति के विराट स्व्नप दिखाई दे रहा है। यहां सारी दुनिया एक परिवार के तौर पर दिख रहा है, और यह नजारा बाशम की पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इण्डिया’ की याद दिला जाता है।
भोपाल, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में भारतीय संस्कृति के विराट स्व्नप दिखाई दे रहा है। यहां सारी दुनिया एक परिवार के तौर पर दिख रहा है, और यह नजारा बाशम की पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इण्डिया’ की याद दिला जाता है।
मुख्यमंत्री चौहान ने बुधवार को सिंहस्थ कुंभ को लेकर ब्लॉग लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है, “बहुत पहले मैंने बाशम की पुस्तक ‘द वण्डर दैट वाज इण्डिया’ पढ़ी थी। पुस्तक भारत राष्ट्र राज्य की अद्भुत विशेषताओं पर प्रकाश डालती है। डा. ईश्वरी प्रसाद भी अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति को प्रतिष्ठापित करते हैं। आशय यह कि हमारे देश में ऐसी कई चीजें हैं जो दुनिया में कहीं नहीं है। भारतीय संस्कृति का यही विराट स्वरूप इन दिनों महाकाल की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ में देखने को मिल रहा है। यहां सारी दुनिया एक परिवार के रूप में दिखाई दे रही है।”
उन्होंने आगे लिखा है कि अपना देश और इसकी संस्कृति ऐसी है जो सब विचारों का आदर करती है। कोई कहता है मैं साकार को मानता हूं, मूर्ति पूजा करता हूं। दूसरों ने तर्क दिया कि भगवान मूर्ति में कैसे आ सकते हैं, वो तो सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। एक विचार कहता है कि साकार को नहीं मानते तो निराकार को मानो, इसमें भी कोई आपत्ति नहीं है। यह भारत की ही धरती है, जिसमें सभी विचारों का आदर है।
उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ का कई बार भ्रमण कर चुके चौहान लिखते हैं, ‘यह सब चीजें मैं उज्जैन की पावन धरती पर देखकर आया हूं। सिंहस्थ में एक से एक संत विराजमान हैं। वहां का दृश्य देखकर मैं अभिभूत हो गया। एक बात मैं आप सभी को बताना चाहता हूं कि वहां द्वैतवादी हैं, अद्वैतवादी हैं और विशिष्ट द्वैतवादी भी हैं। इतने अलग-अलग तरह के संत हैं। मुझे लगा कि भारत में असमानता की बात कहीं नहीं है। सब साथ चल रहे-सब साथ रह रहे हैं। अलग-अलग धाराएं सब आकर उज्जैन में इकट्ठी हो गई हैं। वहां सदभाव और समरसता साक्षात है। एक वातावरण उपस्थित है, जिसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है। श्रेष्ठता और अहमन्यता का भाव देखे नहीं मिल रहा है। सब भूतभावन भगवान श्री महाकाल की शरण में है। सबके मन में एक ही विचार है मैं, मेरा नहीं सबका कल्याण हो।”
उज्जैन के नजारे का वर्णन करते हुए चौहान ने लिखा है कि यहां जब मैं भंडारों में गया तो सब, अन्न क्षेत्रों में बराबरी से प्रसादी पा रहे हैं। जात-पांत बेमानी हो गई है, श्रद्घा और सेवा सवरेपरि। अदभुत ²श्य है। कोई नहीं पूछता भोजन बनाने वाले कौन हैं, जो परोसने वाले हैं वो कौन हैं, लाइन लगी है, लोग बैठ रहे हैं। काहे की असमानता। यही असली हिन्दुस्तान की धरती है। यहाँ केवल देशी भक्त ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी भक्त भी आए हैं। उन्हें देशी परिधान में सज-धज कर, तिलक लगाकर, हरे-रामा, हरे-ष्णा का भजन कर आनंदित होते देख मुझे लगा कि यही है वसुधैव कुटुम्बकम।
ब्लॉग में चौहान ने लिखा है ‘यह मेरा है, यह तेरा है, यह सोच छोटे दिल वालों की होती है, जो विशाल हृदय वाले होते हैं वो कहते हैं सारी दुनिया ही एक परिवार है। एक चेतना सब में निवास करती है जिसका जीवंत दृश्य आस्था और विश्वास के समागम सिंहस्थ में पूरी तरह साकार हो रहा है।”
उन्होंने लिखा है, “यह सिंहस्थ बिरला है। आज अमृत की अवधारणा मेरे विचार में विश्व मानवता के कल्याण की दिशा में एकमत से आगे बढ़ना है। हम यही कोशिश वैचारिक अनुष्ठान के माध्यम से कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आज की समस्याओं के निदान का अमृत विचार इस मंथन से हम हासिल कर पाएंगे।”