इलाहाबाद। देवभूमि उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से हर कोई व्यथित है। देश के लोग जिस तरह एकजुटता से पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए हैं वह प्रशंसनीय है। लेकिन संकट की इस घड़ी में वयोवृद्ध संत स्वरूपानंद सरस्वती ने राजनीतिक कवच पहनकर बद्रीनाथ एवं केदारनाथ मंदिर की संपूर्ण धार्मिक रीति-रिवाज व पूजा परंपराओं को गलत दिशा देकर उस पर स्वयं कब्जा जमाना चाहते हैं।
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने मंगलवार को अलोपीबाग स्थित अपने आश्रम में यह बातें कही। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ एवं केदारनाथ सहित तमाम सिद्धपीठ मंदिरों की संपदा व परंपरा को अपनी निजी संपत्ति बनाने का हक स्वरूपानंद को नहीं है।
कहा कि सनातनी आस्था के केंद्र केदारनाथ व बद्रीनाथ मंदिर की पूजा प्रक्रिया व परंपरा के संबंध में वह गलत राय दे रहे हैं। स्वामी वासुदेवानंद ने स्वरूपानंद पर तमाम छोटे-बड़े मंदिरों में कब्जा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब उनकी निगाह उत्तराखंड के इन दो बड़े मंदिरों पर है, जिसे संत किसी भी कीमत पर पूरा नहीं होने देंगे। सुप्रीमकोर्ट के आदेश व सनातनी परंपराओं का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वरूपानंद स्वयं को ज्योतिष्पीठाधीश्वर कहकर दुनियाभर के लोगों को धोखा दे रहे हैं। अखाड़ा परिषद, आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित व प्रतिपादित सिद्धांत तथा सुप्रीमकोर्ट ने भी स्वरूपानंद को ज्योतिष्पीठाधीश्वर के रूप में मान्यता नहीं दी। बावजूद इसके वह समय-समय पर खुद को ज्योतिष्पीठाधीश्वर साबित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं, जो न्यायोचित नहीं है।