हिमालय की गोद में समुद्र तल से 11,760 फीट की ऊंचाई पर साल के छह महीने बर्फ से ढका रहने वाला केदारनाथ तीर्थस्थल। इसके विषय में माना जाता है कि इसकी स्थापना पाण्डवों ने की थी। बाद में शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
शास्त्रों में केदारनाथ को केदारखंड कहा गया है जहां बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ विराजमान रहते हैं। किसी जमाने में पंगडंडियों वाले रास्ते से तीर्थयात्री यहां तक पैदल चलकर आते थे।
आज भी केदारनाथ तक सीधे पहुचंने के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं है। केदारनाथ से 14 किलोमीटर पहले स्थित गौरी कुंड तक बस और दूसरी सवारियों से लोग चले आते हैं लेकिन यहां से 14 किलोमीटर का रास्ता पहाड़ी रास्तों पर चलकर पूरा करना पड़ता है। जो लोग पैदल नहीं चल सकते उनके लिए घोड़े और डोली की सुविधा यहां मौजूद है।
ओशो ने 1987 में अपनी पुस्तक ‘
मसीहा
‘ खंड 1 में केदारनाथ के विषय में लिखा है कि हजारों लोगों ने पैदल बद्री और केदारनाथ की यात्राएं की। मनुष्य की गलतियों के बावजूद हिमालय शुद्ध और पवित्र रहा। बाद में सलाह दी गयी कि यहां बहुत से यात्री आते हैं लेकिन संकरा रास्ता होने की वजह से कई पैदल यात्रियों की मौत हो जाती है।� इसलिए यहां सड़कों का निर्माण होना चाहिए। अब सड़कें बन गई हैं। जो लोग पैदल यात्रा नहीं कर पाते, बसों पर सवार होकर बद्री और केदारनाथ पहुंचते हैं।
मार्ग में हर पड़ाव पर रेस्तरां, चाय की दुकानें एवं दूसरी सुविधाएं मौजूद हैं। ये सब यहां की खूबसूरती को बर्बाद कर रहे हैं। अब बद्री केदार पवित्र स्थल नहीं रह गए हैं, जैसे कभी हुआ करते थे। ब्रदी केदारनाथ पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या भी पहले से काफी बढ़ गयी है। मार्ग में चप्पे-चप्पे पर अतिक्रमण फैला हुआ है।
लोग बिना ये समझे कि ये दुर्गम तीर्थ है, केवल पर्यटन के तौर पर ही बद्री केदारनाथ को निकल पड़ते हैं। बद्री केदारनाथ तक पहुंचने के लिए अब योग्यता का निर्धारण लोगों के टिकट खरीदने की क्षमता रह गयी है।
कभी यह स्थान मंदिर हुआ करता था लेकिन अब यह घर भी नहीं रहा है। यह पवित्र तीर्थस्थल एक मकान बनकर रह गया है जिसके चारों ओर बाजार और दुकानें सज गयी हैं। यहां मुनष्य को उसकी जरूरत का सामान बेचने वाले दुकानदार और दुकानों का मेला मौजूद है। बेवकूफ या पर्यटक दोनों का अर्थ एक भी समझ सकते हैं, अब केवल ऐसे ही लोग बद्री और केदारनाथ आते हैं। जोखिमों की वजह से इसे अब दुर्गम तीर्थस्थल के तौर पर देखा जा रहा है।