भोपाल, 16 अप्रैल (आईएएनएस)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यहां शनिवार को कहा कि कानून का राज स्थापित करने में और लोगों को त्वरित न्याय दिलाने में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका है।
राष्ट्रपति यहां राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के चौथे सम्मेलन (र्रिटीट ऑफ जजेज) को संबोधित कर रहे थे।
मुखर्जी ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में न्यायपालिका की भूमिका सबसे अहम है। लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने, मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षक व संरक्षक न्यायपालिका ही है।
उन्होंने कहा कि लोगों को न्याय सस्ता, सुलभ और तुरंत मिलना चाहिए। गरीब की न्याय तक पहुंच हो, सबके लिए न्याय सुनिश्चित हो, इसी में न्यायपालिका की सार्थकता है।
राष्ट्रपति ने आगे कहा कि शीर्ष न्यायालय निरंतर सुशासन के लिए सफलतापूर्वक कानूनों की व्याख्या कर रहा है। इससे मानवीय सम्मान की अपेक्षाओं की भी पूर्ति हो रही है।
उन्होंने कहा, “हमें गर्व है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त की है। उच्च मानक और उदात्त सिद्धांतों के द्वारा न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों ने न केवल देश के वैधानिक और संवैधानिक ढांचे को मजबूत किया है, वरन अनेक देशों को भी प्रगतिशील न्यायाधिकार क्षेत्र के लिए प्रेरित किया है।”
राष्ट्रपति ने विभिन्न अदालतों में वर्षो से लंबित मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए उन्हंे तेजी से निपटाए जाने पर जोर दिया और कहा, “शीघ्र न्याय दिलाने में सूचना प्रौद्योगिकी और ई-प्रशासन का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ऐसा होने से आपके (न्यायाधीशों) प्रति भी लोगों में और विश्वास बढ़ेगा।”
उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और विधानपालिका द्वारा किए जाने वाले अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आता है, लेकिन न्यायपालिका के अधिकारों पर नियंत्रण का एकमात्र तरीका उसका स्वयं पर नियंत्रण और अनुशासन रखना है। राष्ट्रपति ने सस्ते और सबकी पहुंच वाले शीघ्र न्याय की जरूरत पर जोर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर ने सम्मेलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि आधुनिक समय में वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिक तौर-तरीके अपनाने की जरूरत है।
केंद्रीय कानून मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय अभियोग नीति में संशोधन करने जा रही है। देश के कानूनी ढांचे में सुधार के उपाय भी किए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्री-लिटिगेशन व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जाए, ताकि छोटे मामलों का न्यायालय के बाहर ही निराकरण हो सके। इससे न्यायालय में लंबित प्रकरणों की संख्या कम होगी।
सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एम. वेंकटचलैयाऔर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर ने भी अपने विचार रखे।