संयुक्त राष्ट्र, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक विकास के लक्ष्यों में बी.आर. अंबेडकर की विरासत की प्रासंगिकता को परखते हुए उनकी 125वीं जयंती मनाई। इस मौके पर इस वैश्विक संस्था से अपील की गई कि भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले इस नेता के जन्मदिवस 14 अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय समानता दिवस’ घोषित की जाए।
संयुक्त राष्ट्र, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक विकास के लक्ष्यों में बी.आर. अंबेडकर की विरासत की प्रासंगिकता को परखते हुए उनकी 125वीं जयंती मनाई। इस मौके पर इस वैश्विक संस्था से अपील की गई कि भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले इस नेता के जन्मदिवस 14 अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय समानता दिवस’ घोषित की जाए।
पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल ने यहां आयोजित अंबेडकर जयंती समारोह में कहा, “मैं समझता हूं कि समानता के लिए बाबा साहेब के जीवनभर का संघर्ष केवल भारत के लोगों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए है। इसलिए उनके सम्मान में 14 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय समानता दिवस’ घोषित किया जा सकता है, यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क ने प्रमुख वक्ता के रूप में कहा कि अंबेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अपने महत्वाकांक्षी टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) के कार्यक्रम में लगा हुआ है।
उन्होंने कहा कि अंबेडकर ने समझा था कि असमानता बुनियादी चुनौतियां खड़ी करती हैं। संयुक्त राष्ट्र ने असमानता को खत्म करने का लक्ष्य अपनाया है।
क्लार्क अभी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की प्रमुख हैं और संयुक्त राष्ट्र के होने वाले चुनाव में महासचिव की प्रत्याशी हैं।
इस समारोह का आयोजन पहली बार संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन ने कल्पना सरोज फाउंडेशन और फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन के साथ मिलकर किया था। इसका विषय ‘कम्बैटिंग इनइक्वै लिटीज फॉर एचीवमेंट ऑफ एसडीजी’ था। समारोह में इन लक्ष्यों के लिए अंबेडकर के संदेशों की प्रासंगिकता पर संगोष्ठी भी शामिल थी।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने कहा, “पिछले साल जब संयुक्त राष्ट्र ने व्यापक एवं बदलाव का एजेंडा 2030 को उसके 17 टिकाऊ विकास के लक्ष्यों और 169 कार्यो के साथ अपनाया था। तब हमने भारतीय के रूप में टिकाऊ विकास के लक्ष्यों में अंबेडकर के नजरिये का असर पाया।
संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन कक्ष में आयोजित इस समारोह में 550 से अधिक राजनयिक, अंतर्राष्ट्रीय अधिकारी, अकादमिक विद्वान, अमेरिका के विभिन्न भागों से आए भारतीय और सामाजिक कार्यकर्ता पधारे थे।
संयुक्त राष्ट्र के प्रवेशद्वार पर नर्तकों एवं ढोल बजाने वालों ने भी अपना कार्यक्रम पेश किया।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के व्याख्याता क्रिस्टोफर क्वीन ने अंबेडकर की दलितों के अधिकारों की लड़ाई और मार्टिन लूथर किंग की अफ्रीकी अमेरिकी के अधिकारों की लड़ाई और दोनों के जीवन और राजनीति में धर्म ने जो भूमिका निभाई, उनकी तुलना करते हुए दोनों की जीवन यात्रा को समानांतर करार दिया।
उन्होंने कहा कि दलित और काले आज भी दुख झेल रहे हैं। स्थितियां और खराब हुई हैं।