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 मप्र का राजनैतिक बदलाव और सिंहस्थ का मिथक | dharmpath.com

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मप्र का राजनैतिक बदलाव और सिंहस्थ का मिथक

April 13, 2016 4:13 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on मप्र का राजनैतिक बदलाव और सिंहस्थ का मिथक A+ / A-

Simhastha-Lobo

(भोपाल)-इसे इत्तेफाक कहें या संयोग या फिर गृहों का प्रभाव कि जब जब भी प्रदेश में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन हुआ है तब तब ही प्रदेश के राजनेतिक हल्कों में बड़ा बदलाव सामने आया है। ज्योतिष जानकारों की मानें तो यह राहु और शनि सिंहस्थ के संयोग के लिए अहम महत्व रखते हैं इसलिए ये राजनैतिक परिवर्तनों को जन्म देते हैं। हाल ही में महाकाल की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ का आगाज जैसे ही हुआ वैसे ही सत्ताधारी दल यानि भाजपा के संगठन महामंत्री अरविंद मेनन का मप्र से दिली जाना संघ और संगठन की कार्यवाही का हिस्सा भले ही हो सकता हो पर ये फेरबदल इसी समय होना बड़ा असमंजस करने वाला है। नए संगठन महामंत्री के आने से सत्ताधारी दल में उठापटक नहीं होगी इसे कहना भी अभी जल्दबाजी होगा।

सिंहस्थ और अतीत की राजनीति
ज्योतिष शास्त्री राजनीतिक उठापटक का सिंहस्थ से पुराना जुड़ाव मानते
हैं। अपनी इस बात की पुष्टि के लिए उनके तर्क भी तथ्यपूर्ण प्रतीत होते
हैं। 8 दिसंबर 2003 को मप्र में भाजपा ने कांग्रेस को हराकर अपनी सरकार
मुख्यमंत्री उमाभारती के नेतृत्व में बनाई। महज चंद माह बाद उज्जैन में
अप्रैल-मई 2004 सिंहस्थ का आयोजन हुआ और उसी समय उमा भारती को हुबली
मामले में अपना इस्तीफा देना पड़ा था। इस दौरान बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री
बने थे। इसके पहले 1992 में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन हुआ।उस समय मप्र के
मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा थे। इसी साल बाबरी मस्जिद ढह जाने के कारण हुए
बवाल के चलते 16 दिसंबर 1992 को बीजेपी शासित प्रदेशों में सरकार
बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।इसके बाद 5 दिसंबर 1993 को
कांग्रेस के दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने।
मार्च-अप्रैल 1980 में सिंहस्थ को आयोजन हुआ उस समय प्रदेश में जनता
पार्टी की सरकार थी। इस दौरान वीरेंद्र सखलेचा और सुंदरलाल पटवा
मुख्यमंत्री रहे।18 फरवरी 1980 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया
गया जो 8 जून 1980 तक जारी रहा।
इसके पर्वू वर्ष 1968-69 में सिंहस्थ को आयोजन हुआ। उस समय यानि 30 जुलाई
1967 से 12 मार्च 1969 तक गोविंद नारायण सिंह प्रदेश में मुख्यमंत्री थे
लेकिन इंदिरा और नेहरू कांग्रेस के खींचतान के बीच उन्हें अपना पद गंवाना
पड़ा था। 13 मार्च 1969 को राजा नरेंशचंद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
लेकिन चंद रोज बाद 25 मार्च को ही उन्हें अपने पद गवांना पड़ा था।
ज्योतिष शास्त्री मानते हैं कि सिंहस्थ जिन कालों में होता है वो
राजनीतिक परिवर्तनों के जन्मकारक होते हैं। इस बार भी जा यो बन रहे हैं
वो भी इसी तरह राजनेतिक उठापटक को इंगित कर रहे हैं। जल्द ही प्रदेश की
राजनीतिक दशा और दिशा में बदलाव होने के संकेत प्रबल हैं।

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