उत्तराखंड में मची तबाही के कारण 16 जून से केदारनाथ मंदिर में पूजा-पाठ बंद थी। पूजा दोबारा शुरू करने को लेकर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और केदारनाथ के मुख्य पुजारी के बीच विवाद भी था। लेकिन अब हल निकल आया है।
गुप्तकाशी में हुई बदरीनाथ केदारनाथ समिति के सदस्यों की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मंदिर में शुद्घिकरण के बाद शनिवार से केदारनाथ मंदिर में पुनः परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना शुरू हो जाएगी।
इस पूजा में केवल पुजारी और मंदिर के कर्मचारी ही हिस्सा लेंगे। 16 जून को केदारनाथ में आई तबाही के बाद से केदारनाथ की पूजा बंद है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब केदारनाथ मंदिर का पट खुलने के बावजूद पूजा बाधित हुई है।
पूजा को लेकर चल रहा था विवाद
तबाही के आज पूरे ग्यारह दिन हो चुके हैं और आज तक मंदिर में पूजा अर्चना नहीं हुई है। केदारनाथ के मुख्य पुजारी भीम शंकर लिंग (रावल) केदारनाथ के चल विग्रह को लेकर गुप्तकशी के उखी मठ में चले आये हैं। यहीं पर अब केदारनाथ की पूजा हो रही है।
मालूम हो गुप्तकाशी केदारनाथ जी का शीत प्रवास है और सर्दियों में यहीं पर केदारनाथ की पूजा होती थी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इसका विरोध कर रहे हैं, इनका कहना है कि यह परंपरा के विरूद्घ है।
जबकि रावल का कहना है कि मंदिर में तब तक पूजा अर्चना पुनः शुरू नहीं की जा सकती जब तक कि मंदिर का शुद्घिकरण नहीं कर लिया जाता। इनका तर्क है कि तबाही में मंदिर परिसर में कई श्रद्घालुओं की मृत्यु हुई और इस कारण यह स्थान अपवित्र हो गया है।
शंकराचार्य रावल की इस बात का खंडन करते हुए कह रहे हैं कि लोगों के मंदिर परिसर में मरने से मंदिर अपवित्र कैसे हो सकता है जबकि भगवान शिव तो स्वयं श्मशान में निवास करते हैं। इसलिए परंपरा का पालन करते हुए शीतकाल में कपाट बंद होने तक केदारनाथ मंदिर में ही पूजा अर्चना होनी चाहिए।
रावल को अज्ञानी और परंपराओं को न समझने वाला बताते हुए शंकराचार्य ने कहा है कि रावल को केदारनाथ की पूजा नहीं करने दी जाएगी। शंकराचार्य ने केदारनाथ की पूजा शुरू करने के लिए अपने एक शिष्य स्वामी आत्मानंद को केदारनाथ रवाना भी कर दिया है।
इनकी पूजा से भी मिलता है केदारनाथ की पूजा का फल
उधर रावल इसका विरोध कर रहे हैं। रावल का कहना है कि शंकाराचार्य और उनके शिष्यों को केदारनाथ की पूजा का अधिकार नहीं है। रावल का तर्क है कि आदि शंकाराचार्य ने यह परंपरा स्थापित की है कि केदारनाथ और बदरीनाथ का मुख्य पुजारी नम्बूदरी ब्राह्मण होगा। आदि गुरू शंकराचार्य भी इसी परिवार से थे और इन्होंने ही बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया है।
जबकि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आदि शंकराचार्य से कोई संबंध नहीं है। इनका जन्म मध्य प्रदेश के दिघोरी नामक स्थान में हुआ और यह नम्बूदरी ब्राह्मण परिवार से नहीं हैं। ऐसे में केदारनाथ की पूजा को लेकर दो धर्माधिकारियों में आपसी जंग छिड़ गयी है।