केदारनाथ में आई तबाही ने श्रद्घालुओं की आस्था को झकझोर कर रख दिया है। जो यहां से जिंदा बचकर आ गए हैं वो फिर कभी केदारनाथ नही जाने की कसम खा रहे हैं। और जो लोग अब तक केदारनाथ के दर्शन की सोच रहे थे वह अब शिव जी को घर बैठकर प्रणाम कर लेने में भी भलाई समझ रहे हैं।
लोगों के मन में केदारनाथ धाम के प्रति भय बैठ गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि केदारनाथ और ब्रदीनाथ दो ऐसे तीर्थ हैं जिसके दर्शन कर लेने मात्र से किसी और तीर्थ के दर्शन करने की जरूरत नहीं होती है। पुराण में बद्रीनाथ के विषय में कहा गया है कि बद्रीनाथ के समान तीर्थ न तो पहले कभी हुआ है और न भविष्य में कभी होगा। यहां आने वाले भक्तों को उत्तम लोक में स्थान मिलता है।
इन तीर्थों में जिनका अंतिम संस्कार होता है अथवा जिनकी मृत्यु होती है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण से प्राचीन काल में बुजुर्ग व्यक्ति यहां मोक्ष की कामना लेकर आते थे। लेकिन अब बुजुर्ग ही नहीं हर उम्र के व्यक्ति इन तीर्थों में आते हैं और धर्म, अर्थ काम सुख में वृद्घि की प्रार्थना करते हैं। मोक्ष प्राप्ति की भावना अब गौण हो चुकी है।
जो लोग धर्म, अर्थ और काम की चाहत लेकर केदारनाथ आना चाहते हैं उनके लिए जरूरी नहीं की केदारनाथ की ही यात्रा करें। कुछ ऐसे तीर्थ स्थान हैं जहां शिव की पूजा करने से केदारनाथ की पूजा और दर्शन करने का फल प्राप्त हो जाता है।
पहली बार एक हफ्ते भूखे रहे केदारनाथ
इन स्थानों में तुंगनाथ के महादेव, रूद्रनाथ, श्रीमध्यमहेश्वर एवं कल्पेश्वर प्रमुख हैं। भगवान शिव के ये चार स्थान केदारनाथ के ही भाग हैं। इनके विषय में कथा है कि पाण्डवों से नाराज होकर महादेव इन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पाण्डव जब महादेव को ढूंढते हुए केदारनाथ पहुंचे तब महादेव भैंस के रूप में प्रकट हुए। पाण्डवों ने इन्हें पहचान लिया। इनसे बचने के लिए महादेव धरती में विलीन होने लगे। तब तुंगनाथ में महादेव का बाहु, रूद्रनाथ में मुख, श्रीमध्यमहेश्वर में नाभि एवं कल्पेश्वर में जटा प्रकट हुए।
केदार नाथ सहित यह चार स्थान मिलकर पंच केदार कहलाते हैं। इनमे से किसी भी स्थान पर शिव की पूजा करने से केदारनाथ की पूजा का फल प्राप्त होता है। एक मान्यता के अनुसार जब महादेव धरती में विलीन होने लगे तब भैंस रूप में उनका सिर नेपाल की राजधानी काठमांडू में निकला। यहां इनकी पूजा पशुपति नाथ के नाम से होती है।
किसी चमत्कार से कम नहीं केदारनाथ मंदिर का बच जाना
इनकी पूजा से भी केदारनाथ की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। केदारखंड में उल्लेख मिलता है कि मध्य महेश्वर स्थित शिवलिंग की पूजा करने मात्र से मनुष्य स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर लेता है। इन स्थानों तक पहुचने में भी जिन्हें कठिनाई हो वह गुप्तकाशी स्थित विश्वनाथ मंदिर में शिव की पूजा कर सकते हैं।
केदारनाथ का शीत कालीन निवास केदारनाथ धाम से 55 किलोमीटर पहले उखीमठ में है। इस स्थान को भी केदारनाथ के समान ही फलदायी माना गया है। मैदानी क्षेत्र में केदारनाथ के समान जागृत और फलदायी ज्योर्तिलिंग काशी में स्थित है जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। इनके दर्शन मात्र से भी केदारनाथ के दर्शन का फल प्राप्त होता है।