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 प्रार्थना का मतलब ही होता है परम की कामना | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

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प्रार्थना का मतलब ही होता है परम की कामना

Prayerप्रार्थना करना कुछ शब्दों को दोहराना नहीं है। प्रार्थना का अर्थ होता है-परमात्मा का मनन और उसकी अनुभूति। प्रार्थना हृदय से की जाती है। प्रार्थना तभी पवित्र होती है, जब मन राग-द्वेष से मुक्त होता है।

प्रार्थना का मतलब ही होता है परम की कामना। परम की कामना के लिए क्षुद्र और तुच्छ कामनाओं का परित्याग करना पड़ता है। परम की मांग या चाह ही प्रार्थना है। अल्प की यानी सांसारिक पदों या प्रतिष्ठा की मांग ‘वासना’ है। धन, यश व पुत्र, इन तीनों की मूल कामना का नाम ऐषणा है। इसे ही ऋषियों ने वित्तैषणा, लोकैषणा और पुत्रैषणा कहा है। जब तक अल्पकाल तक सुख देने वाली ऐषणाओं का अंत नहीं हो जाता , तब तक परम प्रार्थना का आरंभ नही हो सकता।

प्रार्थना तब तक अधूरी है जब तक पुरुषार्थहीनता है। दुगरुणों को दूर करने के लिए दाता बनो। दाता बनने से देव बनोगे। देव का अर्थ है देवता। देवता देने वाले को कहा जाता है। यानी जो दान करता है, वह देव या देवता है। तुम्हारे पास जैसा भी है, जितना है, उसे प्रसन्नता से बांटने वाले बनो। बांटने वाला कभी दुखी नहीं होता और लूटने वाला कभी प्रसन्न नहीं रह सकता। छीनने वाला और छल-कपट में जीने वाला कभी सुखी व प्रसन्नचित्त नहीं हो सकता। प्रभु से प्रार्थना करने के समय हाथ मत फैलाओ। हाथ फैलाने के बजाय अपने हृदय को फैलाओ। प्रार्थना तभी पूर्ण होगी। प्रार्थना में जब सांसारिक वासना का अभाव होगा, तभी वह सच्ची प्रार्थना होगी। इसलिए प्रार्थना शब्दों की रचना मात्र नहीं है, बल्कि हृदय से उठी, जीवनधारा से जुड़ी एक पवित्र पुकार है। प्रार्थना अगर हृदय से की जाए, तो परमात्मा उस पुकार को जरूर सुनता है। यही कारण है कि दुनिया के सभी संतों ने प्रार्थना को अत्यंत महत्व दिया है। प्रार्थना का एक वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। ईश्वर को सर्वशक्तिवान मानकर जब हम उसकी प्रार्थना करते हैं, तब हमारे मन से अहंकार दूर होने लगता है। इस प्रकार प्रार्थना से हमारे अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस कारण हम जीवंतता के साथ जीवन जीते हैं। प्रार्थना ही हमारे अंर्तमन को साफ-स्वच्छ बनाकर हमारे व्यक्तित्व को एक नई दिशा देने का काम करती है।

प्रार्थना का मतलब ही होता है परम की कामना Reviewed by on . प्रार्थना करना कुछ शब्दों को दोहराना नहीं है। प्रार्थना का अर्थ होता है-परमात्मा का मनन और उसकी अनुभूति। प्रार्थना हृदय से की जाती है। प्रार्थना तभी पवित्र होती प्रार्थना करना कुछ शब्दों को दोहराना नहीं है। प्रार्थना का अर्थ होता है-परमात्मा का मनन और उसकी अनुभूति। प्रार्थना हृदय से की जाती है। प्रार्थना तभी पवित्र होती Rating:
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