वाराणसी। केदारधाम मंदिर के स्थानांतरण प्रस्ताव पर विमर्श और उत्तराखंड आपदा के मृतकों की अंतिम संस्कार विधि के मसले पर अपना मत तय करने के लिए सोमवार को काशी विद्वत परिषद की विशेष बैठक हुई।
परिषद ने अपना मत दिया कि केदारनाथ शिवलिंग को हटाने का निर्णय महाप्रलय को आमंत्रण देने जैसा होगा। ऐसे में मंदिर व शिवलिंग स्थानांतरण का विचार पूरी तरह से शास्त्र विरुद्ध है।
सोनारपुरा स्थित श्रीविद्या मठ में आयोजित बैठक में विद्वानों ने शिव महापुराण, अग्निपुराण, धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु आदि के आलोक में विमर्श किया। सर्वसम्मति से सभी विद्वानों ने केदारनाथ मंदिर स्थानांतरण संबंधी मुख्य पुजारी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। साथ ही उत्तराखंड सरकार के उस निर्णय की भी घोर निंदा की गई जिसमें कहा गया है कि आपदा से जुड़े शवों का अंतिम संस्कार केमिकल के जरिये किया जाएगा। विद्वानों ने कहा कि शवों का अंतिम संस्कार सनातनी कर्मकांड से हो।
परिषद की अध्यक्षता करते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जल प्रलय के बावजूद मंदिर एवं शिवलिंग के मूल स्वरूप को कोई हानि नहीं हुई है। यह बेहद दूरगामी संकेत है। ऐसे में पूजा खंडित होने की बात कही जानी बेमानी है। वैसे भी जब केदारनाथ की पूजा मानव नहीं कर रहे होते हैं तो यह कार्य देवता करते हैं। परिषद ने सलाह दी है कि जब तक उत्तराखंड में फंसे सभी श्रद्धालु अपने घरों तक नहीं पहुंच जाते तब तक महामृत्युंजय जाप कराया जाए।