पटना, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। आंशिक शराबबंदी गत शुक्रवार से लागू होने के बाद बिहार के ग्रामीण इलाकों में हजारों देसी शराब की दुकानें बंद हो गईं। अब नीतीश सरकार ने राज्य में ताड़ी की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
गरीबों की बीयर के रूप में मशहूर ताड़ी पर प्रतिबंध लाखों बिहारी ग्रामीणों के लिए बुरी खबर है। यह ताड़ के पेड़ से निकाली जाती है और प्राकृतिक पेय के रूप में इस्तेमाल होती रही है।
देसी शरब की बिक्री पर रोक लगने से लाखों लोग ताड़ी पर निर्भर हो गए थे, लेकिन अब जब इस पर भी रोक लग गई है तो विरोध की भी प्रबल आशंका बन गई है।
नीतीश सरकार के फैसले के अनुसार ताड़ी बेचने वालों को गिरफ्तार किया जाएगा। लेकिन कोई व्यक्ति सिर्फ अपने उपभोग के लिए पेड़ से ताड़ी निकालता है तो सरकार को कोई आपत्ति नहीं होगी।
उधर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने रविवार को सरकार के इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि देसी शराब के बाद ताड़ी की बिक्री पर रोक लगाना अनुचित है।
मांझी ने कहा, “ताड़ी प्राकृतिक पेय है। इसका इस्तेमाल दवा के रूप में होता है। मैंने भी 15 दिनों तक ताड़ी का सेवन किया है। ताड़ी के व्यापार से अधिकांश दलित और गरीब लोग जुड़े हैं इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।”
मांझी ने कहा कि पूर्व मुख्यंत्री लालू प्रसाद यादव ने ताड़ी के व्यवसाय से जुड़े खासतौर पर पासी जाति की मदद के लिए अपने शासन काल में ताड़ी को कर मुक्त किया था।
उल्लेखनीय है कि शहरी इलाकों के विपरीत बिहार के ग्रामीण इलाकों में शराब बंदी प्रभावी दिख रही है। गत गुरुवार की देर रात से ही ग्रमीण इलाकों में करीब 45, 000 हजार देसी दारू की दुकानें बंद हो गईं।
बिहार सकार ने सिर्फ देसी और मसालेदार शराब की बिक्री पर रोक लगाई है। हालांकि शहरों में सरकारी दुकानों पर भारत में निर्मित विदेशी शराब की बिक्री जारी रहेगी।
गत सप्ताह विधानसभा में सर्वसम्मति से बिहार आबकारी संशोधन विधेयक को पारित किया गया था। देसी शराब का उत्पादन और बिक्री कर इस कानून का उल्लंघन करने वालों को मृत्यदंड देने का प्रावधान किया गया है।
पहली बार विधानसभा और विधान परिषद में सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पारित किया कि वे शराब नहीं पिएंगे।
मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी ने कहा कि गुरुवार की देर शाम राज्य मंत्रिमंडल ने नए संशोधन को मंजूरी दी और सरकार ने इस आशय की औपचारिक अधिसूचना जारी कर दी।
विदित हो कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1 अप्रैल, 2016 से शराब पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया था। जिस दिन बिहार आबकारी (संशोधन) विधेयक पारित हुआ उस दिन को नीतीश ने ऐतिहासिक बताया।
नीतीश ने कहा कि लोगों की शराब पीने की आदत छुड़ाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे, क्योंकि इससे गरीब लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं।
उन्होंने कहा “शराब के बढ़ते उपभोग से अन्य की तुलना में महिलाएं अधिक पीड़ित होती हैं।”
अधिकारियों का कहना है कि शराबबंदी का असर सरकारी खजाने पर पड़ेगा। 2015-16 के बजट के अनुसार शराब की बिक्री से सरकार को 4000 करोड़ रुपये की आमदनी होती थी। अब देसी पर रोक लगने से सराकर की आमदनी घटेगी।
भारत में निर्मित विदेशी शराब की बिक्री से अब भी हालांकि सरकार को 2000 करोड़ रुपये की आमदनी होगी।
सरकार ने ताड़ी बेचने वालों को क्षतिपूर्ति के रूप में सरकारी प्रतिष्ठान सुधा डेयरी के उत्पाद बेचने की पेशकश की है।
पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर ने भी 1977-78 में शराब बंदी लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हुए।