श्रीलंका को रौंदकर तीसरी बार फाइनल में पहुंची टीम इंडिया के पास इंग्लैंड से न सिर्फ पिछली हार का बदला लेने का नायाब मौका है बल्कि इस जीत से अंतिम चैंपियंस ट्रॉफी खिताब भी अपने नाम कर लेगी।
महेंद्र सिंह धोनी की ही कप्तानी में भारत के लिए इंग्लैंड का 2011 का दौरा बेहद खौफनाक रहा था। उस दौरे में भारत एक भी मैच नहीं जीत पाया। वह स्थिति तब थी जब भारतीय टीम उस दौरे से दो महीने पहले ही विश्व चैंपियन बनी थी।
आखिरी बार हो रहे आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में जबर्दस्त प्रदर्शन कर रही टीम इंडिया के लिए यह एक शानदार मौका है कि वह मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में खिताबी जीत दर्ज कर पिछले दौरे में मिली शर्मनाक हार का हिसाब-किताब कुछ हद तक चुकता कर दे।
भारत ने उस दौरे में चार टेस्ट मैचों की सीरीज 0-4 से गंवाई थी। इसके बाद पांच वनडे मैचों की सीरीज में 0-3 से हार मिली। दो मैच बारिश के कारण रद कर दिए गए थे। यहां तक कि खेले गए एकमात्र ट्वंटी-20 मैच में भी टीम इंडिया को हार का मुंह देखना पड़ा था।
टीम इंडिया को टेस्ट सीरीज के चारों मैचों में बड़े अंतर से हार मिली थी। वहीं वनडे सीरीज और ट्वंटी-20 मुकाबले में भी भारत की जीत की तलाश पूरी नहीं हुई।
उस दौरे के दो साल बाद भारतीय टीम फिर इंग्लैंड में है और इस बार उसका प्रदर्शन अब तक बेहद उम्दा रहा है। जारी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की युवा टीम ने अपने खेले सारे मैच जीते हैं।
भारत ने टूर्नामेंट से पहले दो अभ्यास मैचों में श्रीलंका और आस्ट्रेलिया को हराया। फिर ग्रुप चरण में दक्षिण अफ्रीका, वेस्ट इंडीज और पाकिस्तान को एकतरफा मुकाबले में हराकर जीत की हैट्रिक लगाया।
धोनी की टीम ने सेमीफाइनल में श्रीलंका को आसानी से धो दिया और अब बारी मेजबान इंग्लैंड की है।
रविवार को होने वाले खिताबी जंग में युवा खिलाड़ियों से लबरेज टीम इंडिया को अपना पिछला दमखम दिखाना होगा जिससे इस बार टीम ट्रॉफी के साथ लौटे।
इंग्लैंड के पिछले दौरे में खाली हाथ लौटने को मजबूर हुई टीम इंडिया के पास इस बार बेहद सुनहरा अवसर है कि वह चैंपियंस ट्रॉफी जीतकर अपने प्रशंसकों का दिल खुश कर दे।