“अघोर” सनातन समाज में यह शब्द ही इस के प्रति आकर्षित होने के लिए पर्याप्त है और जहा तंत्र भी जोड़ दीजिये वह और भी उत्प्रेरक का कार्य करेगा आपकी और आकर्षित होने के लिए.सोने पर सुहागा करना हो तो ढेर सारी मालाएं,अंगूठियाँ और केश विन्यास के साथ कपडे भी पहन लीजिये रक्त-वर्णीम और काले,आप हो गए अघोर और तांत्रिक शब्द जोड़ कर अघोर-तांत्रिक.
सही भी है इसके लिए आवश्यक नहीं कोई डिग्री कोई विद्यालय हाँ आवश्यकता है तो गुरु-शिष्य परंपरा की वही सनातन से इस मनुष्य को मनुष्य बने रहने की प्रेरणा देने का ज्ञान सहेजने की प्रेरणा देती रही है.इस रूप को धर कई स्वहित-साधने वाले धूर्त समय-समय पर सामने आते रहे हैं और अपना व्यापार जमाने की कोशिश करते हैं.व्यापार उनका जम तो जाता है लेकिन उन हजारों मनुष्यों के क्या होता है जो धन,और श्रद्धा रुपी अपने अमूल्य खजाने को ठगा चुके होते हैं,यही ठगी का कार्य तो ठग और धूर्त भी करते हैं फिर सनातन की इस अमूल्य परंपरा को बदनाम करके इसका हनन कर ये धूर्त अपना भी परलोक खराब करते हैं और दूसरों का भी.
मैं इस लेख को लिखने पर इस लिए मजबूर हुआ क्योंकि सिंहस्थ पर्व के दौरान अभी से एक महिला अघोर तांत्रिक अपने आप को कहने वाली स्त्री शिवानी दुर्गा मीडिया के माध्यम से चर्चा में आई और उसने बेहतरीन प्रबंधन के माध्यम से तंत्र का सिरमौर होने का ऐसा प्रचार किया जिससे वह राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया की पसंद बन गयी.हम भी आकृष्ट हुए खबर के लिए लेकिन जब उनसे बात की तब पता चला की ये तंत्र की शुरुआत ही नहीं जानती और इन्हें यह भी भरोसा है की चूंकि तंत्र को कोई नहीं जानता खासकर पत्रकारों में अतः जो भी कह दो वही लिखा जाएगा .और वही हुआ भी अघोर ,तंत्र आदि को ले कर अपना अधकचरा ज्ञान बांटते हुए यह स्वयम्भू अघोर-तांत्रिक शिवानी दुर्गा अपने मिशन में कामयाब होती गयी.उज्जैन के पढ़े-लिखे लोग भी तंत्र की अज्ञानता की वजह से इसके फैलाए तंत्र-जाल में सम्मोहित होते गए.
हमने इनसे व्हाट्स अप पर चर्चा की और जानना चाहा की आखिर तंत्र में इनकी गुरु – परंपरा क्या है ?यदि इनकी अघोर-दीक्षा हुई है तब इनके गुरु कौन हैं ?क्या ये महामंडलेश्वर भी हैं जो नासिक में आनंद-अखाड़े से होने का ये दावा करती हैं?इन सब सवालों के जो जवाब हमें मिले और जब हम तह तक पहुंचे तो वही सब सामने आया जो अन्य वेश बनाए तांत्रिक गली-कूचों में करते आये हैं बस रूप इतना है की यह तांत्रिक अभिजात्य वर्ग में पैठ बनाए है.इसके समर्थक अंग्रेजी बोलने वाले हिन्दुस्तानी हैं और इन्हें पूरा समर्थन देते हैं.
हम आपको उन तथ्यों से परिचित करवा रहे हैं जो तंत्र एवं तांत्रिक क्या हैं,उनका उद्देश्य क्या है ,कैसे ये समाज में अपनी अज्ञानता के चलते भोले-भाले लोगों को और अधिक भ्रमित करते जाते हैं ये कथित तांत्रिक सदियों से सनातन की इस महत्त्व-पूर्ण विधा का नुकसान अपनी क्षणिक स्वार्थ-सिद्धि के लिए करते आये हैं.
हमने जो बात शिवानी दुर्गा से की उसके अनुसार तथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं
इन्होने अपना अघोर-गुरु नागनाथ योगेश्वर को बताया जो वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव मंदिर पर पूजन-अर्चन करते थे.शिवानी दुर्गा इनके बीमार होने पर अपने साथ इन्हें मुम्बई ले आयीं एवं उनका इलाज करवाया वाराणसी में नागनाथ की क्या कहानी थी हमने पड़ताल की इस तारतम्य में उनके बाल-सखाओं से भेंट हुई और जो जानकारियां सामने आयीं वे स्थिति स्पष्ट करने के लिए काफी थीं.
नागनाथ योगेश्वर का मूल नाम नागनाथ तिवारी था जिनका घर वाराणसी घाट के नजदीक ही है,आज भी उनके परिजन वहां निवासरत हैं.सन 1967 में जन्में नागनाथ तिवारी के चार भाई एवं छह बहने हैं.नागनाथ तिवारी बचपन से ही साहसिक एवं छात्र-राजनीति में दखल रखते थे इधर-उधर भटकने और उत्पात करने की वजह से घर वालों ने इन्हें उपेक्षित कर दिया.घाटों के किनारे ये नशे की गिरफ्त में आसानी से आ गए.खाटी बनारसियों की सुबह और शाम घाटों पर ही व्यतीत होती है एवं कई मतों के संतों के अलावा कई विधाओं में पारंगत ठग वाराणसी घाटों की शोभा बढाते हैं.
कुछ समय बाद सभी तरफ से निराश नागनाथ योगेश्वर ने वह रूप बना लिया जो उन्होंने अघोर साधकों का देखा या सुना और महाश्मशान मणिकर्णिका घाट के आस-पास बैठे देखे जाने लगे यहाँ से उनकी सभी जरूरतों की पूर्ति हो जाती थी,उन्होंने गर्मी में ऊनी वस्त्र एवं काशी की भीषण सर्दी में सिर्फ लंगोट धारण कर लोगों का ध्यान अपनी और आकृष्ट किया.मणिकर्णिका घाट पर पूरा समय बिताने की वजह से वहां स्थित शिव-मंदिर के प्रबंधकों ने ब्राह्मण-कुल का होने की वजह से नियमित पूजा-पाठ की जिम्मेदारी इन्हें दे दी.
हमने इनकी गुरु-परंपरा के सम्बन्ध में जानने की कोशिश की लेकिन इनके परिजनों सहित कोई मित्र इस बांरे में नहीं बता सका और ना ही उसका समर्थन किया.इनकी शिष्य -परंपरा में कोई भी सामने नहीं आया.नागनाथ तिवारी का चूँकि राजनीति में शुरू से ही रुझान था अतः गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण से व्यथित स्वामी निगमानंद द्वारा की गयी भूख हड़ताल पश्चात मृत्यु उपरान्त ये भूख हड़ताल पर बैठ गए,और वहां से मीडिया में चर्चा में आये.स्थानीय निवासियों ने बताया की शुरुआत में इन्हें समर्थन एवं प्रसिद्धि दोनों मिली लेकिन बाद में इनके द्वारा इस आन्दोलन की आड़ में किये गए कुछ कृत्यों से स्थानीय समर्थक दूर होते गए तथा इनका यह आन्दोलन असफल एवं बीमार होने की वजह से कालांतर में मृत्यु का कारक बना.
इन्हें अपना अघोरी गुरु बताया अपने आपको अघोर-तांत्रिक कहने वाली शिवानी दुर्गा ने.हमने इनसे उपरोक्त प्रश्न पूछे
1.अघोर क्या है ?
2.आपने सर्वेश्वरी इन्टरनेशनल वूमेन अखाडा बनाया है सर्वेश्वरी से क्या अभिप्राय है.
3.जब आप एक संस्था IWCVT संचालित करतीं हैं तब सिंहस्थ में इस अखाड़े का नाम क्यों ?
4.क्या आप गृहस्थ हैं ?
5.आपने नासिक कुभ में आनंद अखाड़े से महामंडलेश्वर या आचार्य की पदवी ली है क्या आप उन योग्यताओं को पूरा करती हैं ,आपका आनंद अखाड़े से क्या विवाद हुआ ?आपको बता दें जब हमने इस जानकारी के लिए आनंद अखाड़े के प्रवक्ता राजेश व्यास जी से बात की तब उन्होंने थोड़ी देर में बात करने का कह फोन काट दिया और दोबारा बात नहीं की.
इन सभी प्रश्नों का जो उत्तर इन अघोर-तांत्रिक कहलाने वाली महिला ने दिए वे सही नहीं थे इस लेख की अगली कड़ी में इनके दिए उत्तर एवं सत्य क्या है हम प्रस्तुत करेंगे.हम आपको यहाँ यह बता दें की तंत्र में महिला साधिकाओं को योगिनी एवं भैरवी की उपाधि से संबोधित किया जाता है अघोर में तांत्रिक शब्द का कहीं अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि अघोर-साधक इन सब झाड-फूंकों को,व्यापार को,अपने स्वयं के प्रचार से बहुत दूर रहता है हाँ ओझे -गुनिये,झाड-फूँक वाले अपने आप को चर्चा में अवश्य बना कर रखते हैं.
यह सब वही है जो गाँव में निवास करने वाले,वनवासी क्षेत्रों में निवासरत ओझे-गुनिये करते हैं.
इनकी प्रथम खबर उज्जैन के चक्रतीर्थ शमशान में इनके द्वारा की गयी चांडाल योग को शांत करने के लिए की गयी साधना से प्रचारित हुई एवं सुनियोजित प्रबंधन से इलेक्ट्रोनिक मीडिया की उपस्थिति निश्चित की गयी.हमने वहां से इन्हें परखना शुरू किया
प्रथम -जिस समय काल में ये तंत्र-साधना में रत थीं वह तंत्र-पूजा के लिए अनुकूल ही नहीं था इस बात का ध्यान किसी की और नहीं गया.
द्वितीय– ये जहाँ पूजन कर रहीं थीं इनके पास इनका आसन नहीं था,तंत्र साधक बखूबी जानते हैं की आसन के बिना कोई पूजन नहीं होता.जो तलवार-भाले थे उनकी भी जरूरत को तंत्र-साधकों ने अनुपयोगी बताया.
तृतीय – तंत्र में शराब उपयोग का अपना समय काल एवं विधि है जब की ये वे नियम भी नहीं जानतीं.तंत्र में शराब या अन्य मादक-पदार्थों के प्रयोग की उपयोगिता से भी ये अपरिचित हैं.
शिवानी दुर्गा ने हमें अपने व्हाट्स अप ग्रुप पर जोड़ा एवं जो बातें उनसे हुईं वे ग्रुप पर करने को कहीं,इन्होने यह भी कहा की वे मीडिया का सम्मान करती हैं और अपनी कहानी हमें लिखने की चुनौती दी.इसके बाद इन्होने हमें समूह से हटा दिया.
हम भी पूरी जांच-परख एवं तंत्र-साधको,उनसे सम्बंधित प्राचीन शास्त्रों के अध्ययन के पश्चात इस निर्णय पर पहुंचे और तथ्य आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं.इस लेख का तात्पर्य मात्र जन-मानस को भ्रान्ति से बचाना है.सनातनी तंत्र -साधक प्रचार में न पड़ राष्ट्र सेवा एवं मानव सेवा में तल्लीन रहते हैं हमने कुछ साधकों से उन्हेंसमाज के सामने लाने की चर्चा की तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया,उन्होंने यहाँ तक कहा की यदि कोई शिष्य प्रचार या व्यवसाय में जाता दिखता है तो वे उससे दूरी बना लेते हैं एवं समस्त शक्तियां उसकी कार्य करना बंद कर देती हैं.
अपने को अघोर-तांत्रिक कहने कहलाने वाली शिवानी सच्चाई उसकी विभिन्न उपाधियों से ही परिलक्षित होती है कभी अघोर,कभी आचार्य,कभी महामंडलेश्वर,कभी वूडू और क्या-क्या.सनातन इन सब की क्या आज्ञा देता है,मित्रों इस पावन सिंहस्थ के इस अवसर पर जन-कल्याण हेतु महाकाल से प्रार्थना करते हुए ऐसे भ्रामक तत्वों से बचाना हमारा कर्तव्य है,ताकि वे अपनी आस्था भ्रम-पूर्ण ठगों को ना प्रस्तुत कर उन महाकाल की आराधना में अपना अमूल्य समय दे सकें.(क्रमश:)
इस लेख के अगले संस्करण में हम प्रस्तुत करेंगे मुम्बई में क्या जाल फैलाया है इस तांत्रिक ने,क्या है इस तरह के तंत्र-मन्त्र का कानूनी पहलू,किस अधिकारी को इस तरह के प्रचार-प्रसार पर कार्यवाही का है अधिकार,कुछ तंत्र-साधकों के तंत्र पर विचार.क्यों नहीं अब चढ़ती महाकाल को शव-भस्म ,शव-भस्म या भस्म चढाने के उद्देश्य और भ्रांतियां .अघोर क्या है ,तंत्र क्या है,इस जम्बू द्वीप पर अवतरित हुए अघोरियों का परिचय ,शिवानी दुर्गा की पी एच डी की सच्चाई अगले अंक में ………….
लेखक-अनिल कुमार सिंह “अनल”
मो.न.- 9039130023