पटना। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गांधी मैदान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में बुधवार को भक्तों ने रासलीला, होली महोत्सव और कंस वध का प्रसंग सुश्री आस्था भारती से सुना। होली प्रसंग पर पंडाल में पुष्पवर्षा भी हुई। कथा का आज सातवां दिन था।
कथा को आगे बढ़ाते हुए सुश्री आस्था भारती ने कहा कि होली का मतलब होता है, प्रभु का हो जाना। ईश्वर के रंग में आत्मा का रंग जाना ही होली है। इसी तरह से महारास भी बाहरी नहीं, अपितु एक भक्त की आंतरिक अवस्था होती है। आत्मा से परमात्मा के मिलन का मधुमास है। इसे वर्तमान में अश्लील बनाया जा रहा है। एक युवा और युवती के नृत्य को महारास समझा जाता है। लेकिन श्रीमद्भागवत में जो महारास का वर्णन है उसे अगर कोई समझ ले तो काम वासना से मुक्त हो जाएगा। कहां आठ वर्ष का कृष्ण और कहां 80 वर्ष की गोपियां। अश्लीलता का सवाल ही कहां है? कृष्ण ने होली के माध्यम से गोपियों को पहले बाहर से रंगा और फिर महारास के जरिए परम आनंद का रसास्वादन कराया।
कंस वध प्रसंग सुनाते हुए सुश्री भारती ने कहा कि जब- जब आसुरी प्रवृतियां धरती पर जन्म लेती हैं प्रभु संहार करने के लिए आते हैं।
धर्म विष्णु और राजनीति लक्ष्मी- समाज में बुराइयां इसलिए सिर उठाने लगीं हैं क्योंकि लोग धर्म और आध्यात्म से दूर होते जा रहे हैं। तना काटने से नहीं, पेड़ को ही जड़ सहित उखाड़ फेंकने से यह बुराई का वृक्ष खत्म होगा। उक्त बातें सुश्री आस्था भारती पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि बुराई का वृक्ष मन में है और परिवर्तन आने से यह उखड़ जाएगा। इसके लिए जरूरी है आध्यात्म से सबको जोड़ना। राजनीति और धर्म के बीच क्या संबंध है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि धर्म विष्णु हैं और राजनीति लक्ष्मी। राजा को ब्रह्मज्ञानी होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो ब्रह्मज्ञानी को ही राजा बना देना चाहिए। धर्म में पाखंड क्यों बढ़ रहा है, के जवाब में कहा कि इसके लिए हम ही दोषी हैं। अगर गलत चीजों को बढ़ावा देंगे तो यह कहां रूकने वाला है। इंसान के अंदर अज्ञानता है, इसीलिए वह गलत और सही की पहचान नहीं कर पा रहा है। जरूरत है प्रकाश अर्थात ज्ञान की।