नई दिल्ली: भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मंगलवार को इन खबरों को खारिज किया कि वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिए जाने से उत्पन्न संकट के मुद्दे पर पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दबाव में है। सूत्रों का कहना है कि आडवाणी ने उनसे मिलने आए नेताओं को कहा है कि नरेंद्र मोदी देश के नेतृत्व के लिए सही नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि इस तरह की खबरें निराधार हैं। राजनाथ ने कहा, ‘‘मैं एक चीज स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि कुछ समाचार चैनलों पर खबर चली है कि आरएसएस ने यह कहा है या वह कहा है। मैं पूरी तरह स्पष्ट करना चाहता हूं कि संघ ने कुछ नहीं कहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने संघ में लोगों से पता किया है, क्या उन्होंने कोई बयान दिया है। उन्होंने मुझे बताया कि उनकी तरफ से कोई बयान नहीं दिया गया है, ये सब खबरें पूरी तरह निराधार हैं।’’
मीडिया की खबरों में पूर्व में दावा किया गया था कि इस मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और राजनाथ सिंह के बीच चर्चा हुई है।
सूत्रों ने बताया कि भाजपा और आरएसएस दोनों का यह मत था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए जाने के फैसले से पीछे नहीं हटा जाना चाहिए। हालांकि, उनका मानना था कि आडवाणी को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए और उन्हें मनाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि वह अपना इस्तीफा वापस ले लें।
आडवाणी की वापसी की संभावनाओं के प्रश्न पर राजनाथ सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और फिर वह आज राजस्थान के लिए रवाना हो गए।
बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने लाल कृष्ण आडवाणी के इस्तीफे को नामंजूर कर दिया है। इसके साथ-साथ उन्हें मनाने के प्रयास लगातार जारी हैं।
इससे पहले, गोवा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समापन के ठीक एक दिन बाद सोमवार को पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद पार्टी में कोहराम मच गया।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के उन्नयन विरोधी आडवाणी ने आरोप लगाया है कि पार्टी के अधिकांश नेता सिर्फ अपने निजी एजेंडे को तरजीह दे रहे हैं।
गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के आखिरी दिन रविवार को आम चुनाव के लिए भाजपा की प्रचार समिति के अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी को नियुक्त किया गया था।
आडवाणी का अप्रत्याशित फैसला यदि नहीं बदलता है तो इसका सीधा सा मतलब मोदी को 2014 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी के रूप में मंजूरी प्रदान किया जाना होगा। शाम तक चले घटनाक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी को मनाने के लिए उनके आवास पर जमे रहे।
पार्टी के भीतर फूट सार्वजनिक होने से घबराई भाजपा ने आनन फानन में अपनी संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई। संसदीय बोर्ड पार्टी की तीन शीर्ष निकायों में से एक है। दो अन्य निकाय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और चुनाव समिति हैं।
गुजरात से मोदी ने आडवाणी से अपना इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया और अपने नेता से पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं को निराश नहीं करने की अपील की।
1980 के दशक में भाजपा के गठन से लेकर इसे राजनीतिक रूप से सबल बनाने वाले और पार्टी को धुर हिंदूवादी विचारधारा देने वाले आडवाणी मोदी का उन्नयन करने से रोकने में कामयाब नहीं हो सके। अपना विरोध जताने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से ही इस्तीफा दे दिया।
आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को एक नाराजगी भरा पत्र लिखा है। तीन पैरे के पत्र में मोदी का कहीं भी जिक्र नहीं है, लेकिन इसके स्वर से स्पष्ट है कि पार्टी की गोवा बैठक में रविवार को मोदी का कद बढ़ाए जाने से ही इस्तीफा जुड़ा हुआ है।
आडवाणी ने कहा है, “कुछ समय से मैं पार्टी के मौजूदा कामकाज से और जिस दिशा में पार्टी जा रही है, उससे तालमेल बिठाने में कठिनाई महसूस कर रहा हूं।”
आडवाणी ने कहा है कि अब “किसी के मन में यह भावना नहीं रह गई है कि यह वही आदर्शवादी पार्टी है, जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी ने खड़ा किया था, जिनकी एक मात्र चिंता देश और देश की जनता को लेकर थी।”
आडवाणी ने पत्र में लिखा है, “हमारे अधिकांश नेता अब मात्र अपने निजी एजेंडे को लेकर चिंतित हैं।” इस तरह आडवाणी ने भाजपा नेताओं की अबतक सबसे कड़ी आलोचना की है, और इससे पार्टी का आंतरिक कलह खुलकर बाहर आ गया है।
आडवाणी ने आगे लिखा है, “इसलिए मैंने पार्टी के तीन प्रमुख पदों – राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है। इसे मेरा त्यागपत्र समझा जा सकता है।” आडवाणी अब सिर्फ भाजपा के सदस्य भर रह गए हैं।
आडवाणी के इस्तीफे से भाजपा सन्न रह गई है। अधिकांश नेता, जो सोमवार सुबह तक मोदी के उन्नयन के खुमार में थे, उन्होंने शुरू में इस पर कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
भाजपा की वैचारिक रूप से अभिभावक संस्था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
इस्तीफा मिलने के एक घंटे के अंदर भाजपा ने कहा कि आडवाणी को मनाने की कोशिश की जाएगी। राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया कि उन्होंने आडवाणी का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है।
राजग के घटक दल, जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, “यह दुखद है.. यह राजग के लिए अच्छा नहीं है।”
गोवा से भाजपा सांसद श्रीपद नाइक ने कहा, “यह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है।” भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि पार्टी को भरोसा है कि वह आडवाणी को इस्तीफा वापस लेने के लिए कह सकती है।
भाजपा में छिड़े गृहयुद्ध से कांग्रेस खुश नजर आई। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा, “इस पर भाजपा को सोचना है। संबंधित व्यक्ति को सोचना है। हमने पहले ही कहा था कि इसके (मोदी का उन्नयन) अपने नतीजे होंगे।”
आडवाणी 1947 में आरएसएस से जुड़े और जब 1951 में जनसंघ की स्थापना हुई तो उससे भी जुड़ गए। 1986 में उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष पद की कमान तब संभाली थी जब लोकसभा में इसके मात्र दो सांसद थे।
अध्यक्ष बनने के तत्काल बाद आडवाणी राम मंदिर आंदोलन के प्रबल समर्थक बन गए। इसी आंदोलन ने भाजपा को आगे बढ़ने में मदद की और इसके बाद यह एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।