कोलकाता: भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के लगभग साढ़े छह साल बाद एक बार फिर बीसीसीआई के अंतरिम प्रमुख बनाए गए क्रिकेट प्रशासक जगमोहन डालमिया के लिए जीवन ने भले ही नई करवट ली हो, लेकिन वह इसे ‘एक व्यक्ति की जीत’ नहीं मानते। स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण के मद्देनजर क्रिकेट की धूमिल हुई छवि को साफ करने के उद्देश्य से दी गई इस जिम्मेदारी को जगमोहन डालमिया एक चुनौती के रूप में ले रहे हैं।
जगमोहन डालमिया ने चेन्नई में बीसीसीआई की आपात कार्य समिति (इमर्जेन्ट वर्किंग कमेटी) की बैठक में हिस्सा लेकर लौटने के बाद कहा, ”यह ‘एक व्यक्ति की जीत’ नहीं है… आज समय की जरूरत क्रिकेट की छवि को स्वच्छ करना है, और यही मेरी शीर्ष प्राथमिकता है… मेरे पास यह काम करने के लिए बहुत कम समय है, इसलिए मुझे बहुत तेजी से काम करना होगा…”
उन्होंने कहा, ”मुझे क्रिकेट बिरादरी को साबित करके दिखाना होगा कि क्रिकेट साफ-सुथरा खेल है… मुझे लोगों में भी वह विश्वास वापस लाना होगा…”
करीब सात साल पहले बीसीसीआई से निकाल दिए गए जगमोहन डालमिया की वापसी एक संकटमोचक के रूप में हुई है, जिन्हें स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण से शर्मसार भारतीय क्रिकेट के खोए गौरव को लौटा लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 73-वर्षीय धुरंधर क्रिकेट प्रशासक जगमोहन डालमिया ने वर्तमान समय को कठिन बताते हुए कहा, “यह एक कठिन समय है… मैंने अपनी बेगुनाही साबित की है… मैं चीजों को हासिल करने में विश्वास करता हूं…”
उन्होंने हाल ही में बोर्ड के क्रमशः सचिव तथा कोषाध्यक्ष पदों से इस्तीफा देने वाले संजय जगदाले और अजय शिर्के से अपने-अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहने का अनुरोध किया है। जगमोहन डालमिया ने कहा, “वे (जगदाले और शिर्के) अनुभवी व्यक्ति हैं और अपना काम जानते हैं… मैं उनसे 24 घंटे में जवाब की उम्मीद कर रहा हूं…”
उधर, बीसीसीआई सचिव पद से इस्तीफा देने वाले संजय जगदाले और कोषाध्यक्ष पद छोड़ने वाले अजय शिर्के ने साफ कर दिया कि बोर्ड में लौटने की उनकी कोई इच्छा नहीं है, जबकि कार्यकारी समिति के सदस्यों ने भी उनसे अपने इस्तीफे के फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया है।
वैसे जगमोहन डालमिया बीसीसीआई ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और भारत में क्रिकेट को कमाऊ बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है, लेकिन सात बरस पहले वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण उन्हें पद गंवाना पड़ा था।
कोलकाता के रहने वाले डालमिया वर्ष 1979 में बीसीसीआई से जुड़े थे और अपने दोस्त से बाद में दुश्मन बने इंदरजीत सिंह बिंद्रा के साथ अपनी छाप छोड़ी। दोनों ने भारत में एक-दिवसीय क्रिकेट विश्वकप के आयोजन में अहम भूमिका निभाई और खेल का व्यवसायीकरण किया। इससे बीसीसीआई ’90 के दशक में दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बना। वह वर्ष 1997 में आईसीसी के अध्यक्ष बने और बीसीसीआई को कमाऊ संगठन बनाया। उन्होंने टीवी अधिकार बेचने और क्रिकेट को विज्ञापनदाताओं के लिए आकर्षक बनाने में अपने चतुर दिमाग का इस्तेमाल किया।
इसके साथ ही खेल पर पश्चिम का दबदबा खत्म हुआ और उपमहाद्वीप का रुतबा बढ़ा। उन्हें हालांकि टीवी अधिकारों की बिक्री को लेकर हुए विवाद के कारण आईसीसी का पद छोड़ना पड़ा था। आईसीसी से डालमिया का नाता वर्ष 2000 में टूटा था और अगले साल वह एसी मुथैया को हराकर बीसीसीआई के अध्यक्ष बने। उनका वह कार्यकाल वर्ष 2004 में खत्म हुआ, लेकिन उनके समर्थित उम्मीदवार हरियाणा के रणबीर सिंह महेंद्रा ने महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार को हराकर अध्यक्ष पद हासिल कर लिया। उस वोटिंग में स्कोर 15-15 से बराबर रहने पर डालमिया के निर्णायक वोट के आधार पर महेंद्रा ने जीत दर्ज की थी।
हालांकि शरद पवार ने अगले साल 21-10 से जीत हासिल करके बदला चुकता कर लिया, और उसके बाद डालमिया के खिलाफ कोषों के दुरुपयोग के आरोप लगे। बीसीसीआई के नए प्रशासकों ने उन्हें भवानीपुर में इंडियन ओवरसीज बैंक के एक खाते से बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी या कैब) के खाते में आठ करोड़ 55 लाख डॉलर के ट्रांसफर का ब्योरा देने को कहा। दरअसल, जगमोहन डालमिया वर्ष 1996 से 2005 तक कैब अध्यक्ष थे।
बीसीसीआई ने डालमिया पर क्रिकेट विश्वकप, 1996 के कोषों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया और मुंबई पुलिस के पास वर्ष 2006 में उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई। वह चंद महीने बाद फिर कैब अध्यक्ष बन गए। उन्होंने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य से समर्थन प्राप्त उम्मीदवार पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी को 61-56 से हराया।
लेकिन इसके बाद भी बीसीसीआई के लगातार बढ़ते दबाव के कारण डालमिया को पद छोड़ना पड़ा था, और इसके एक साल बाद प्रसून मुखर्जी को रिजवानुर रहमान हत्या विवाद के कारण पुलिस आयुक्त पद से हटा दिया गया, और डालमिया ने फिर मुखर्जी को हराया।
सो, इस तरह स्पॉट फिक्सिंग के इस ताजा विवाद ने उस अनुभवी प्रशासक को भारतीय क्रिकेट को संकट से निकालने का जिम्मा सौंपा है, जिसने सबसे पहले उसे विश्व क्रिकेट में महाशक्ति बनाया था।