नई दिल्ली, 20 फरवरी (आईएएनएस)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की आर्ट गैलरी में इन दिनों प्रख्यात चित्रकार सतीश गुजराल के चित्रों की प्रदर्शनी लगी हुई है। प्रदर्शनी में गुजराल की भारत के विभाजन के समय की हृदय विदारक चित्रों को प्रदर्शित किया जा रहा है जिससे उस समय की दुखदायी यादें जाता हो जाती हैं। इन्हें देख कर कोई भी अभिभूत हो जाता है।
तैलीय कैनवास पर बने अतिरंजित मानवीय चित्र 1947 में विभाजन के दौरान उपद्रवों से लोगों की चिंता और शोक को बयां करते हैं जिसके चश्मदीद गुजराल भी थे। पृष्ठभूमि में प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की गजलें बजती हैं जिससे लोगों का मन और भी उदास हो जाता है। प्रदर्शनी का नाम ‘ब्रश ऑफ लाइफ’ रखा गया है जो दर्शकों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाता है।
प्रदर्शनी के आयोजक केजी प्रमोद कुमार के अनुसार यह प्रदर्शनी भारत के प्रसिद्ध चित्रकार सतीश गुजराल के सम्मान में आयोजित है जो पिछले दिसम्बर में 90 साल के हो गए। गुजराल को पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया था। प्रदर्शनी में गुजराल फाउंडेशन की ओर से उनकी 70 कलाकृतियां प्रदर्शित की जा रही हैं जो कलाकार को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करता है। छह दशकों में बनी इन कलाकृतियों को देखने से गुजराल की शिल्प विविधता का भी बोध होता है।
इस संबंध में प्रमोद कुमार कहते हैं, “90 वर्षीय गुजराल के सम्मान में इस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। इसके पीछे यह सोच थी कि उनकी पुरानी कलाकृतियां जो सार्वजनिक नहीं हुईं हैं उन्हें प्रदर्शित की जाए। इनमें से कई पेंटिंग ऐसी हैं जो पहली बार दिखाईं जा रहीं हैं। हमलोगों को उनकी कुछ कला कृतियां 1952 की भी मिलीं हैं।”
प्रदर्शनी में लाई गई गुजराल की कुछ कलाकृतियां चंडीगढ़ म्युजियम से लायी गईं हैं तो कुछ निजी संग्रहालयों से। इसके अलावा उनकी कुछ कलाकृतियां नेशनल आर्ट गैलरी से भी मिली हैं।
गुजराल का जन्म अविभाजित पंजाब के झेलम में हुआ था। उनकी पहली पेंटिंग ‘पार्टिसन पेंटिग्स’ नाम से है जिसे उन्होंने 1947 में बनाई थी और इसी से अपने करियर की शुरुआत की थी। इस पेंटिंग में उस समय के कटु अनुभवों को चित्रित किया गया है। इस बारे में प्रमोद कुमार कहते हैं कि ‘पार्टिशन पार्टिग्स’ उनके करियर की महत्वपूर्ण कला कृतियां हैं।
गुजराल और उनके अभिभावकों ने विभाजन के समय कई लोगों की सहायता की थी। उनकी पूर्व की कलाकृतियां उनके जीवंत अनुभवों की ही देन हैं। सीमा के दोनों ओर से अपहृत महिलाओं को बचाने और उनके पुनर्वास में भी गुजराल ने अहम भूमिका निभाई थी।
प्रदर्शनी में घूम रहे एक कलाकार ने कहा कि यहां गुजराल की कलाकृतियों को क्रम में सजाया गया है। इन्हें देख कर कोई भी महसूस करता है कि सचमुच गुजराल ही केवल ऐसे आधुनिक भारत के कलाकार हैं जिनकी कला में विविधता है। इसके लिए लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स ध्न्यवाद का पात्र है जहां वह प्रशिक्षित हुए थे।
सीखने की ललक उनमें इतनी है कि 80 वर्ष की आयु में कमजोर श्रवण शक्ति होने पर भी वे अध्ययन के लिए मैक्सिको गए और वहां प्लेसिया नेशनल डी बेल्लास आर्ट्स में प्रसिद्ध कलाकार दिएगो रिवेरा और डेविड एलफेरो सिक्वि रो के साथ काम किया।
प्रमोद कुमार कहते हैं कि गुजराल के बनाए कुछ छाया चित्र भी प्रदर्शनी की विशेषता है। इनमें जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय और कृष्ण मेनन के छाया चित्र भी शामिल हैं।
जब कोई प्रदर्शनी के अंत में पहुंचता है जहां गुजराल की हाल की कलाकृतियां लगी हुई हैं तो सहसा वह उनकी पहले की कलाकृतियों से तुलना करने लगता है और उसे एहसास होता है कि कैसे एक कलाकार का जीवन चक्र पूरा हुआ है। इसके अलावा प्रदर्शनी में दर्शक गुजराल की नजरों से जीवन, संघर्ष और समारोह को देखता है।