इबोयाइमा लैथांगबम
इम्फाल, 19 फरवरी (आईएएनएस)| पर्यटक जो कम बजट में प्रकृति से घुलना-मिलना, दुनिया की विरली वनस्पति, जीव जन्तुओं को देखना चाहते हैं और जिन्हें प्रकृति से भावनात्मक संबंध है या फिर जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना और मित्र राष्ट्रों की सेना के बीच लड़ाई के बारे में जानने की जिज्ञासा है, वे बड़ी संख्या में पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर का रुख कर रहे हैं।
मणिपुर की राजधानी इंफाल के लिए गुवाहाटी से प्रतिदिन उड़ान है। इसके अलावा एनएच 2 और 37 के जरिए भी गुवाहाटी और सिल्चर से वहां पहुंचा जा सकता है। यहां कम पैसे वाले पर्यटकों के लिए सस्ते होटल हैं, तो संपन्न पर्यटकों के लिए तीन सितारा होटल भी हैं।
मणिपुर से 60 किमी दूर स्थित वहां की मशहूर लोकटक झील है जो कीबुल लामजाओ नेशनल पार्क का हिस्सा है। यह पार्क खास तरह के बारहसिंगों का प्राकृतिक घर है। सुंदर कपाल वाले ये बारहसिंगे केवल मणिपुर में ही पाए जाते हैं। इन्हें यहां सांगाई कहा जाता है। पर्यटन विभाग की ओर से झील के किनारे सेंद्रा पहाड़ी पर झोपड़ियां बनाईं गईं हैं, लेकिन अधिकांश पर्यटक झील में तैरते बायोमास पर बनी निजी झोपड़ियों में रहना पसंद करते हैं या फिर छप्पर की बनी सरायों में।
लोकटक पूर्वोत्तर भारत की सबसे बड़ी स्वच्छ जल वाली झील है जहां डोंगी सवारी और वाटर स्पोर्ट्स की सुविधाएं उपलब्ध हैं। हजारों मछुआरे झील में तैरते बायोमास पर बनी झोपड़ियों में रहते हैं। इन झोपड़ियों में शौचालय की सुविधा नहीं है। पर्यटक मछुआरों की तरह डोंगी में ही शौच या स्नान करते हैं।
विशिष्ट बारहसिंगों के अलावा पर्यटक विभिन्न देशों से आए हजारों पक्षियों को देख सकते हैं और उनकी चहचहाट सुन सकते हैं।
पर्यटकों से जब उनके अनुभवों के बारे में पूछा गया तो अधिकांश ने कहा कि प्रकृति से घुलने-मिलने और जीवन में इस तरह का आनंद प्राप्त करने का उनका यह पहला अवसर है।
कुछ पर्यटक शिरॉय लिली के फूल को देखने उखरुल भी जाते हैं। इस फूल की खासियत है कि यह शिरॉय की पहाड़ियों के अलावा कहीं और नहीं पनप पाते हैं। कई पर्यटक इसे ले गए लेकिन इसे लगा पाने में असफल रहे।
मणिपुर में मोयरांग भी ऐतिहासिक स्थल है। इंडियन नेशनल आर्मी (आइएनए) के जवानों ने सबसे पहले यहां भारत की आजादी का झंडा फहराया था। यहां आइएनए का एक संग्रहालय भी है जिसमें जवानों के उपयोग में आए सामान रखे गए हैं। आइएनए और जापानी सेना के जवान यहां चार महीने तक रहे थे। इसके बाद वे युद्ध के लिए कोहिमा चले गए थे।
मणिपुर पर्यटन मंच के अध्यक्ष थंगजाम धबाली ने आइएएनएस से कहा कि मणिपुर और नागालैंड, जो कि उस वक्त असम का हिस्सा थे, में युद्ध के दौरान 53000 जापानी और 15000 मित्र राष्ट्रों के सैनिक मारे गए थे। युद्ध में कितने नागरिक हताहत हुए इसकी जानकारी नहीं हैं क्योंकि स्थानीय लोगों और जापानी सेना के जवानों की पहचान एक जैसी थी।
धवाली ने कहा, “जापानी सरकार के साथ यहां एक युद्ध स्मारक बनाने पर भी सहमति बन गई है।”
हाल तक यहां जापानी सरकार के प्रतिनिधि और मृत सैनिकों के संबंधी अंतिम संस्कार के लिए उनके कंकाल लेने आते थे। यहां मृत सैनिकों की याद में एक अत्याधुनिक अस्पताल बनाने का भी प्रस्ताव है, लेकिन लालफीताशाही की वजह से यह मूर्त रूप नहीं ले पाया है।