गुवाहाटी, 16 फरवरी (आईएएनएस)। अरुणाचल प्रदेश के एक गांव में एक महिला के चाय बागान की दुनिया में कदम रखने से बहुत से लोगों को अफीम की खेती छोड़ने की प्रेरणा मिली है।
महिला का नाम बासाम्लु क्रिसिक्रो है। स्नेहवश लोग इन्हें ‘टी लेडी’ (चाय वाली महिला) कह कर बुलाते हैं। अरुणाचल के लोहित जिले के दूरदराज के गांव वाक्रो में आज से नौ साल पहले इन्होंने चाय की खेती शुरू की थी। चाय की खेती की वजह पूरी तरह से निजी थी।
2009 में पता चला कि उनकी मां को फेफड़ों का कैंसर है। मुंबई में सफल आपरेशन हुआ। डाक्टर ने कहा कि आगे से इन्हें केवल आर्गेनिक ग्रीन चाय ही पिलाई जाए।
दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री लेने वाली क्रिसिक्रो को आर्गेनिक ग्रीन टी लाने के लिए पड़ोसी राज्य असम जाना पड़ता था। उन्होंने फैसला किया कि वह इसे अपने गांव में ही पैदा करेंगी।
आज लोहित जिले के कई परिवार क्रिसिक्रो के नक्शेकदम पर चलकर चाय की खेती कर रहे हैं। यह बात इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि इनमें से अधिकांश परिवार पहले अफीम की खेती किया करते थे।
अरुणाचल के पूर्वी लोहित, अंजाव, तिरप और चांगलांग जिलों में अफीम की खेती आम बात है। नकदी फसल होने की वजह से लोग इसकी तरफ आकर्षित रहते हैं। इन जिलों की सीमा चीन से लगती है।
क्रिसिक्रो ने कहा, “पूर्वी इलाके, खासकर मेरा इलाका (वाक्रो) संतरे के लिए जाना जाता था। लेकिन, पता नहीं किन वजहों से बीते कुछ सालों में संतरे से लोगों का ध्यान हट गया और संतरे के बागीचों के मालिक अफीम की खेती में मशगूल हो गए।”
क्रिसिक्रो ने कहा, “अफीम ने आय का विकल्प उपलब्ध कराया और साथ में नशा भी।”
क्रिसिक्रो और नाइल नामी स्वास्थ्य कर्मी ने लोगों को यह समझाने का बीड़ा उठाया कि जिंदगी को बेहतर तरीके से गुजारने के लिए आय चाय की खेती से भी हासिल की जा सकती है।
क्रिसिक्रो के पास 2009 में चाय का एक हेक्टेयर का खेत था। आज यह बढ़कर पांच हेक्टेयर हो गया है। उन्होंने कहा, “हमने अफीम उगाने वालों से कहा कि वे अपनी जमीनों पर छोटे पैमाने पर चाय की खेती करें। इसने चमत्कार किया। एक साल के अंदर 12 परिवार छोटे पैमान पर चाय की खेती करने वाले बन गए।”
उन्होंने कहा कि यह देख कर दुख होता है कि अफीम का उपभोग, खासकर युवाओं में इसका इस्तेमाल हमारे समाज को कितना नुकसान पहुंचा रहा है।
उन्होंने खुशी जताई कि उनके प्रयासों की वजह से वाक्रो में 12 परिवारों ने अफीम की खेती छोड़कर चाय की खेती अपना ली।
उन्होंने कहा कि वह अफीम की खेती रोकने की गुहार लेकर कई बार अरुणाचल सरकार के पास गईं लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी। अगर सरकार अफीम की जगह चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए कुछ करती तो हालात आज जैसे खराब नहीं होते।