धर्मशाला। पांडुलिपि को अंग्रेजी में मैनुस्क्रिप्ट कहा जाता है लेकिन यह उसका सही अनुवाद नहीं है। भोजपत्र पर भी साहित्य लिखा गया और कहीं-कहीं तो उसे उकेरा भी गया है, ऐसे में हमें इसके सही अर्थ की तलाश करनी चाहिए।
जहां तक मूल तत्व की बात है, भगवान बुद्ध की सारी शिक्षाओं को अगर एक शब्द में परिभाषित करना हो तो एक ही शब्द दिखता है और वह है अहिंसा। ये विचार तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री एवं स्कॉलर प्रो. सामदोंग रिंपोछे ने व्यक्त किए। वह वीरवार को हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी, पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर शिमला तथा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली के सहयोग से यहां आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्यातिथि उपस्थिति से मुखातिब थे। उन्होंने ‘करुणा एवं अहिंसा की अवधारणाएं-संदर्भ बौद्ध पांडुलिपियां’ विषय पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने बताया कि पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर शिमला की ओर से राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के सहयोग से अब तक तीन तत्वबोध व्याख्यान तथा प्राचीन लिपियों के प्रशिक्षण के भी वर्ष 2006 में 12 दिवसीय प्रशिक्षण कुल्लू में, सात दिवसीय टांकरी प्रशिक्षण शिविर 2007 में श्रीचामुंडा तथा 21 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर 2011 में आयोजित किए गए। इन शिविरों के माध्यम से विद्वानों को हिमाचल की प्राचीन लिपियों को सीखने का अवसर मिला है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के लोगों को जागरूक करने के लिए पांडुलिपि जागरूकता शिविर व सेमिनारों का भी आयोजन किया जाता है। अब तक हिमाचल प्रदेश में पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर द्वारा लगभग 90 हजार पांडुलिपियों का डाटा एकत्रित किया गया है, जिसे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली को ऑनलाइन करने के लिए भेजा जा चुका है। इस अवसर पर दलाईलामा के मित्र एवं शिक्षाविद प्राचार्य पीएन शर्मा ने भी विचार रखे।