नई दिल्ली, 30 जनवरी (आईएएनएस)। इतिहासकार प्रोफेसर मृदुला मुखर्जी ने शनिवार को यहां सवाल किया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आखिर खोए कहां हैं, जो उन्हें फिर से खोजा जाए।
मुखर्जी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित 41वें वार्षिक व्याख्यान में बोल रही थीं। व्याख्यान का विषय था -‘रिकवरिंग गांधी’।
मृदुला ने कहा कि महिलाओं को घर और चौका-रसोई की सीमा से बाहर लाकर उन्हें राजनीतिक जीवन में लाने के लिए किसी महिला या पुरुष ने उतना नहीं किया है, जितना गांधी ने किया।
मृदुला ने कहा, “भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाएं ही क्या, युवतियों और लड़कियों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया था। परिणाम यह हुआ कि देश में महिलाओं को मतदान का अधिकार संविधान में पुरुषों के साथ ही मिल गया। इसकी तुलना में यूरोप और अमेरिका के कई देशों में मताधिकार मांगने के लिए महिलाओं को आंदोलन चलाने पड़े थे।”
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा कि “हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां राजनीतिक दलों के बीच बदला लेने का चलन चल पड़ा है। किसी व्यक्ति से बदला लेने से समाज और व्यवस्था में बदलाव नहीं आ सकता, ऐसा गांधी लगातार कहते थे।”
प्रोफेसर मुखर्जी ने हाल के सालों में गांधीजी पर हुए आक्षेपों पर भी इतिहास की नजर दौड़ाई। इसमें विशेष है गांधीजी को जातिवादी बतलाना और उन पर ऊंची जाति के दुराग्रह पालने का आरोप।
उन्होंने कहा, “इन आरोपों में गांधीजी और बाबासाहेब अंबेडकर के बीच जो मतभेद थे, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है। जबकि इन दोनों ने एक-दूसरे को जितना संभाल कर चलने का उपक्रम किया, उसकी बात भी नहीं की जाती।”
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा कि बाबासाहेब अंबेडकर कांग्रेस के न्योते पर ही संविधान सभा में शरीक हुए और संविधान लिखने की समिति की अध्यक्षता भी स्वीकार की।
नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय की पूर्व निदेशक मुखर्जी कहा, “हमें गांधीजी की सुरक्षा करने की जरूरत नहीं है। उनका जीवन और उनकी कर्म-यात्रा इतनी सशक्त है कि वह लगातार सामयिक होती जा रही है। आज हमें गांधीजी को नहीं, अपने आस-पास बह रही विनाशकारी हवाओं से अपने आप को बचाना है। नए सिरे से गांधी को धारण करना है। इस से कोहरा छंटेगा और सूरज की रोशनी लौट आएगी।”