मुंबई।। देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनैंस कंपनी के वाइस चेयरमैन और सीईओ केकी मिस्त्री ने इस सेगमेंट के लिए अलग रेगुलेटर बनाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अभी एचडीएफसी जैसी कंपनियों पर बैंकिंग नॉर्म्स लागू होते हैं। उन्होंने अपने स्टेटमेंट में कहा, ‘हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों को बैंक जैसे प्रोविजनिंग नॉर्म्स, एलटीवी रेशियो और रिस्क वेटेज मानने पड़ते हैं।’ मिस्त्री के इस बयान को एसबीआई चेयरमैन प्रतीप चौधरी को दिया गया जवाब माना जा रहा है। चौधरी ने 18 मई को सुझाव दिया था कि सभी हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों पर एक जैसे रूल्स लागू होने चाहिए और उनका रेगुलेशन आरबीआई को करना चाहिए।
बैंक जो होम लोन देते हैं, उन्हें आरबीआई रेगुलेट करता है। वहीं, एचडीएफसी या एलआईसी हाउसिंग जैसी हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों का रेगुलेशन नैशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) के हाथों में है। चौधरी ने कहा था कि एक रेगुलेटर होने से बैंकों और हाउसिंग कंपनियों के बीच बराबरी का मुकाबला होगा। उन्होंने कहा था कि अभी ऐसा नहीं है।
हालांकि, इस बारे में मिस्त्री ने कहा कि होम लोन पर प्री-पेमेंट चार्ज पहले एनएचबी ने खत्म किया था। बैंकों पर आरबीआई ने इसे बाद में लागू किया गया। मिस्त्री ने कहा, ‘प्री-पेमेंट चार्ज खत्म करने के मामले में बैंकों को ज्यादा वक्त मिला था।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘अभी घरों की कमी है। एनएचबी को 1988 में घरों की कमी दूर करने के मकसद से बनाया गया था। अभी भी उसके लिए यही मकसद है।’
होम लोन का 75 फीसदी बाजार अभी बैंकों के पास है। और ऐसा पहली बार नहीं है, जब देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनैंस कंपनी और सबसे बड़े बैंक के बीच टकराव हुआ है। कुछ साल पहले एसबीआई ने ‘टीजर लोन’ स्कीम लॉन्च की थी। इसमें कस्टमर को शुरू के कुछ साल में कम इंटरेस्ट रेट देना पड़ता था। इससे एसबीआई तब होम लोन मार्केट में हिस्सेदारी बढ़ाने में सफल रहा था। उस वक्त एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने कहा था, ‘मैं इसके हक में नहीं हूं। हालांकि, इसे सबके लिए खत्म किया जाना चाहिए। कई लोगों ने मुझसे इस बारे में बात कही है और हम इसे अच्छा प्रॉडक्ट नहीं मानते।’ उस वक्त ओपी भट्ट एसबीआई के चेयरमैन थे।