आज शंकाराचार्य का जन्मदिन है। इनके विषय में कहा जाता है कि यह भगवान शिव के अवतार थे। हिन्दू धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिए ही यह पृथ्वी पर आये थे। 32 वर्ष के अल्प जीवन काल में ही इन्होंने भारत के चार धामों ब्रदीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी की स्थापना की।
इसके अलावा इन्होंने केदारनाथ और जोशीमठ को भी परम पावन स्थान के रूप में मान्यता दिलायी। शंकराचार्य ने सात वर्ष की उम्र में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था। इस उम्र ही इन्होंने वेदों, पुराणों, उपनिषदों एवं रामायण और महाभारत को याद कर लिया।
इनके गांव से काफी दूर पूर्णा नदी बहती थी। इन्होंने नदी को अपने गांव के नजदीक से बहने के लिए कहा। इनकी प्रार्थना पर नदी ने रुख बदल लिया और कालाड़ी ग्राम के निकट बहने लगी। इससे इनकी माता को प्रतिदिन नदी स्नान करने में सुविधा हो गयी।
इतने ज्ञानी और आध्यत्मिक शक्तियों के स्वामी होने के बावजूद जब इनका सामना मण्डन मिश्र की पत्नी भारती से हुआ तब इन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। शंकराचार्य पूरे भारत में धार्मिक एकता स्थापित करना चाहते थे। इसलिए जरूरी था कि सभी विद्वानों की विचारधारा एक बने।
इसलिए देश भर के विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराते हुए वह बिहार के कोशी तट पर बसे बनगांव महिषी पहुंचे। यहां पर इन्होंने मण्डन मिश्र नामके विद्वान से शास्त्रार्थ किया। 18 दिनों तक शास्त्रों पर तर्क वितर्क होने के बाद मण्डन मिश्र पराजित हो गये।
तब इनकी पत्नी भारती ने कहा कि पत्नी पति का आधा अंग होती है इसलिए आपने अभी आधे अंग को ही हराया है। इसके बाद भारती ने कामशास्त्र पर प्रश्न करना शुरू कर दिया। बाल ब्रह्मचारी होने के कारण शंकराचार्य कामशास्त्र पर कोई उत्तर नहीं दे पाये। भारती के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए इन्होंने एक महीने का समय मांगा।
शंकराचार्य ने योग बल से जाना कि कश्मीर का राजा मरने वाला है। इसके बाद इन्होंने अपना शरीर शिष्यों के सौंप दिया और दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की विद्या से राजा के मरते ही उसके शरीर में प्रवेश कर गये। राजा के सौ सुन्दर रानियां थी।
इनके साथ इन्होंने एक माह तक भोग-विलासपूर्ण जीवन बिताया। इसके बाद पुनः अपने शरीर में लौट आये और कामशास्त्र से संबंधित भारती के प्रश्नों का उत्तर दिया। इसके बाद मण्डन मिश्र को पराजय स्वीकार करनी पड़ी और यह शंकराचार्य के अद्वैतमत को मानने लगे।