चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है। 16 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खुल गए। इससे पहले 13 मई को यमुनोत्री-गंगोत्री और 14 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खुल चुके हैं। आइए जानें, पवित्र बदरीनाथ धाम का माहात्म्य..
बदरी शब्द ‘ब’ एवं ‘दरी’ शब्दों के संयोग से बना है। ब का अर्थ है – परमात्मा और दरी का मतलब- गुहा। अर्थात बदरीनाथ वह स्थल है, जहां परमतत्व की चेतना घनीभूत हो उठती है। देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बदरीनाथ का मंदिर भगवान विष्णु व उनके अवतार नारायण को समर्पित है। योगियों के अनुसार, यह गुहा प्रत्येक मनुष्य की भौहों के मध्य में भी है।
इस तीर्थ की महिमा हमारे पौराणिक ग्रंथों में मुक्त कंठ से गायी गई है। महाभारत एवं पुराणों में इसके बदरी वन, बदरिकाश्रम तथा विशाला आदि नाम मिलते हैं। पंद्रह मीटर ऊंचे बदरीनाथ मंदिर का वर्तमान स्वरूप आदि शंकराचार्य की देन है, जिनकी आज जयंती भी है। बदरीधाम मंदिर गर्भग्रह, सभामंडप, सिंहद्वार इन तीन भागों में विभक्त है। इसके आसपास पंचशिला, वसुधारा, मातामूर्ति मंदिर, व्यास गुफा, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी आदि तीर्थस्थल भी हैं।
देव संस्कृति के ग्रंथों में सप्त बदरी का उल्लेख मिलता है, जिनमें चमोली स्थित बदरीनाथ प्रमुख हैं। अन्य बदरी क्षेत्र भी उत्तराखंड में देवात्मा हिमालय की गोद में स्थित हैं। ये निम्नवत हैं :
ध्यान बदरी : कुम्हारच˜ी के निकट उरगम ग्राम में स्थित।
वृद्ध बदरी : कुम्हारच˜ी के निकट ऊषीमठ में स्थित।
भविष्य बदरी : जोशीमठ के निकट।
योग बदरी : पांडुकेश्वर के निकट।
आदि बदरी : कैलाश मार्ग में शिवचुलम से थुलिंगमठ के बीच।
नृसिंह बदरी : जोशी मठ में।