लखनऊ , 17 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 19 फीसदी है, लेकिन यह जानकार आप हैरान हो जाएंगे कि आजादी के 68 वर्षो बाद भी उप्र पुलिस में उनका प्रतिनिधित्व महज पांच फीसदी तक ही पहुंच पाया है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई सूचना में यह जानकारी सामने आई है।
लखनऊ , 17 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 19 फीसदी है, लेकिन यह जानकार आप हैरान हो जाएंगे कि आजादी के 68 वर्षो बाद भी उप्र पुलिस में उनका प्रतिनिधित्व महज पांच फीसदी तक ही पहुंच पाया है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई सूचना में यह जानकारी सामने आई है।
आरटीआई दायर करने बाले सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत के दौरान यह जानकारी दी।
बकौल संजय, “उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद में एक आरटीआई दायर करके उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरियों में मुसलमानों की संख्या की सूचना मांगी थी, जिससे यह आंकड़ा निकलकर आया है। 19 प्रतिशत की मुस्लिम आबादी बाले यूपी की पुलिस की नौकरियों में महज 5 प्रतिशत ही मुसलमान हैं।”
संजय ने बीते वर्ष के फरवरी माह में उप्र के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में एक आरटीआई दायर करके यूपी पुलिस में कार्यरत मुसलमानों की संख्या की सूचना मांगी थी।
पुलिस महकमा इस मामले में हीलाहवाली करता रहा। राज्य सूचना आयोग के दखल के बाद पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक (कार्मिक) ने बीते 26 नवंबर के पत्र के माध्यम से संजय को सूचना उपलब्ध कराई है।
समाजसेवी संजय को उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार, उप्र पुलिस में कार्यरत तृतीय श्रेणी के कुल 192799 कार्मिकों में से महज 10203 (5़29 प्रतिशत) ही मुसलमान हैं। इसी प्रकार उप्र पुलिस में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कुल 13489 कार्मिकों में से 408 (3़ 02 प्रतिशत) मुसलमान कार्यरत हैं।
यदि उप्र पुलिस में वर्तमान में कार्यरत तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कार्मिकों की सम्मिलित संख्या के आधार पर कुल 206288 कार्मिकों में से महज 10611 (5़ 14 फीसदी) ही मुसलमान कार्मिक कार्यरत हैं ।
उल्लेखनीय है कि सयुंक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के बाद अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाता है।
संजय ने बताया कि साल 2005 में भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति को जानने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा में पेश की 403 पेज की रिपोर्ट से पहली बार खुलासा हुआ था कि भारत में मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजाति से भी खराब थी।
समाजसेवी संजय के मुताबिक, “सरकारी मुलाजिमों के भ्रष्टाचार के चलते मुस्लिम परिवारों और समुदायों के लिए तय फंड और सेवाएं उन इलाकों में भेज दी जाती हैं, जहां मुसलमानों की संख्या कम है या न के बराबर है। इस तरह योजनाओं के धन का अफसरों और राजनेताओं के बीच बंदरबांट होने की बजह से ये योजनाएं मुसलमानों का अपेक्षित विकास करने में कारगर नहीं हो पा रही हैं।”
संजय कहते हैं, “केंद्र और राज्य के अल्पसंख्यक मंत्रालयों द्वारा अल्पसंख्यकों की समस्याओं के मूल कारणों का निवारण नहीं कर पाने के कारण ही सच्चर समर्थित सरकारी नीतियों के बावजूद मुस्लिम समुदाय हाशिए पर बना हुआ है।”
मुसलमानों की इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए संजय ने बताया कि वे इस मुद्दे पर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मुसलमानों के लिए बनाई गई योजनाओं को भ्रष्टाचार मुक्त कर उनका सही क्रियान्वयन कराने की मांग करेंगे।