नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को `ग्राहक ही सम्राट है` कहते हुए बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार (रिटेल) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सरकारी नीति की पुष्टि की और कहा कि एक नीति के रूप में इसमें कोई संवैधानिक या वैधानिक दुर्बलता नहीं है। अदालत ने ग्राहक को सर्वेसर्वा बताया और बिचौलियों को खुदरा कारोबार के लिए दुश्मन, अभिशाप और खून चूसने वाला बताया।
न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की खंडपीठ ने कहा, नीति को प्रभावित करने वाले मामले में यह अदालत तब तक हस्तक्षेप नहीं करती, जब तक नीति असंवैधानिक, वैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध, मनमाना, बेतुका या शक्ति का दुरुपयोग नहीं हो।
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, उपभोक्ता ही सम्राट है। बिचौलिया खुदरा कारोबार का दुश्मन है। बिचौलिया अर्थव्यवस्था का खून चूसने वाला है और यदि उसे समाप्त किया जा रहा है, तो इसका सीधा लाभ उपभोक्ता और उत्पादक को होगा।
अदालत ने कहा कि बहु-ब्रांड रिटेल में एफडीआई की इजाजत देने वाली विवादित नीति में सीमा से बाहर कुछ भी किए जाने का कोई दोष नहीं है और इसे दी गई चुनौती वाजिब नहीं है।
वकील एम.एल. शर्मा ने नीति को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि दो प्रेस नोट जारी कर नीति स्वीकार की गई थी और रिटेल में एफडीआई को नियमित करने वाले सम्बद्ध प्रावधानों और नियमावलियों में संशोधन नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि बहुब्रांड खुदरा बाजार में एफडीआई को मंजूरी देने का मकसद इस बाजार से बिचौलियों को बाहर करना है और उपभोक्ता तथा उत्पादक को लाभ दिलाना है। उन्होंने कहा, बिचौलिया अर्थव्यवस्था के लिए अभिशाप होता है और वह सूदखोर की तरह काम करता है।
याचिका पर सरकार के जवाब का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, थाईलैंड तथा अन्य देशों के उदाहरण बताते हैं कि संगठित और असंगठित क्षेत्र खुदरा बाजार में समान रूप से एक साथ रह सकते हैं। अदालत ने पूछा, “आपको क्यों लगता है कि ऐसा भारत में नहीं होगा।