बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने हाल ही में राज्यसभा में अगड़ी जाति के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग करके ये मुद्दा फिर गरमा चुकी हैं। वहीं इससे पहले देश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने भी पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में अगड़ी जातियों के लिए आयोग गठित करने की बात कही थी।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी सामान्य श्रेणी की जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण का लाभ देने के हिमायती रहे हैं। इन सबके बीच अगर उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद द्वारा एक आरटीआई पर दिए गए जवाब को संकेतक मानें तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी नौकरियों में अगड़ों की घटती संख्या के मद्देनजर सरकारी सेवाओं में उनको आरक्षण प्रदान करने की मांग अब प्रासंगिक होती जा रही है।
दरअसल, यूपी के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में बीते साल फरवरी माह में सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा ने एक आरटीआई दायर करके यूपी पुलिस में कार्यरत तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कुल कार्मिकों में से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के कार्मिकों की संख्या की सूचना मांगी थी।
पुलिस महकमा इस मामले में हीलाहवाली करता रहा और राज्य सूचना आयोग के दखल के बाद पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक कार्मिक ने बीते दिनों पत्र के माध्यम से संजय को सूचना उपलब्ध कराई है।
संजय को उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार, यूपी पुलिस में कार्यरत तृतीय श्रेणी के कुल 192799 कार्मिकों में से महज 67764 (35.15 प्रतिशत) ही सामान्य श्रेणी के हैं, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 81403 (42.22 प्रतिशत )कार्मिक कार्यरत हैं तथा अनुसूचित जाति के 42064 (21.82 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति के 1568 (0.81 प्रतिशत) कार्मिक कार्यरत हैं।
इसी प्रकार यूपी पुलिस में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कुल 13489 कार्मिकों में से 6013 (44.54 प्रतिशत ) सामान्य श्रेणी के हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 3771 (27.94 प्रतिशत) कार्मिक कार्यरत हैं तथा अनुसूचित जाति के 3594 (26.63 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति के 120 (0.89 प्रतिशत) कार्मिक कार्यरत हैं।
यदि यूपी पुलिस में वर्तमान में कार्यरत तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कार्मिकों की सम्मिलित संख्या के आधार पर देखें तो कुल 206288 कार्मिकों में से महज 73768 (35.76 प्रतिशत) ही सामान्य श्रेणी के हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 85174 (41.29 प्रतिशत) कार्मिक कार्यरत हैं तथा अनुसूचित जाति के 45658 (22.13 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति के 1688 (0.82 प्रतिशत) कार्मिक कार्यरत हैं।
संजय ने आईपीएन को बताया कि एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर एआईआर 1963 एससी 649 में अदालत ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा लगाई थी, पर यदि इन आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि आज यूपी पुलिस में कार्यरत 64.24 प्रतिशत कार्मिक आरक्षित वर्गो से हैं।
बकौल संजय, यूपी में शीघ्र ही होने जा रही सिपाहियों की भर्ती के बाद यूपी पुलिस में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का प्रतिनिधित्व और भी कम हो जाएगा। वह अब जल्द ही प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से मिलकर उनसे अगड़ी जाति के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था कराने संबंध में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की गुजारिश करेंगे।