भारतीय संस्कृति में ग्रहण को नितांत खगोलीय घटना न मानकर उसे अध्यात्म से भी जोड़ा गया है। ज्योतिष के अनुसार, ग्रहण के कुछ घंटों पूर्व से उसका वेध (सूतक) प्रारंभ हो जाता है, जो ग्रहण की समाप्ति तक प्रभावी रहता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, ग्रहण के सूतककाल में भोजन, शयन, पूजन आदि निषिद्ध होते हैं। सिर्फ मानसिक जप व साधना कर सकते हैं। इसीलिए इस बीच मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। यह सूतक ग्रहण के प्रारंभ (स्पर्श) से एक घंटे पूर्व प्रारंभ होता है। ग्रहण के दिखाई देने के समय को साधना का पर्वकाल कहा जाता है। इसके पीछे भारतीय मनीषियों की उन्नत सोच परिलक्षित होती है, जो हमें यह संदेश देती है कि यदि कोई संकट से ग्रस्त है, तो हमें अपने दैनंदिन कार्यो को छोड़कर उसे संकट से निकालने के लिए प्रयत्न और प्रार्थना करनी चाहिए। यह विचार हमारे भीतर अपने लोगों के प्रति संवेदना जगाने का कार्य करता है।
मान्यता है कि भारतीय ऋषियों ने ग्रहणकाल के समय प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करने पर पाया कि ग्रहण के समय उत्पन्न प्राकृतिक ऊर्जा का आध्यात्मिक लाभ लिया जा सकता है। मान्यता तो यह भी है कि वर्र्षो तक सहश्चों मंत्रों के जाप से जो पुण्य फल मिलता है, वह ग्रहण के दृश्य काल में मात्र मानसिक जाप से ही मिल जाता है। यही कारण है कि ग्रहणकाल को साधना का पर्वकाल कहा गया है।
कल 25 अप्रैल की रात्रि में चैत्री पूर्णिमा को देर रात 1.22 बजे चंद्रमा को ग्रहण का स्पर्श होगा। देर रात 1.38 बजे चंद्रग्रहण का मध्यकाल होगा। इस समय ग्रहण का ग्रासमान अतिअल्प 2.1 प्रतिशत होगा, इसलिए इसे अतिअल्प ग्रास चंद्रग्रहण कहा जाएगा। देर रात 1.53 बजे ग्रहण का समापन (मोक्ष) हो जाएगा। ग्रहण का सूतक (वेध) कल गुरुवार को सायं 4.22 बजे से प्रारंभ होगा।
चंद्रग्रहण के अंतर्गत चंद्रबिंब का मात्र 2.1 प्रतिशत भाग ही ग्रसित होगा। ऐसे अल्पग्रास ग्रहण को देखने के लिए पुराने समय में तकनीकी उपकरण उपलब्ध नहीं थे। शायद इसीलिए प्राचीन धर्मग्रंथों में ऐसे ग्रहण को अनादेश्य अर्थात जनसाधारण को न बताने योग्य माना जाता था, लेकिन आज वर्तमान युग में ऐसी टेलिस्कोप सुलभ हैं, जिनके द्वारा अतिअल्पग्रास वाले ग्रहण को भी सहजता से देखा जा सकता है और खगोलशास्त्री व वैज्ञानिक इस ग्रहण को मान्यता दे रहे हैं। अस्तु, कल चंद्रग्रहण के योग को साधना में अभीष्ट सिद्धिदायक स्वर्णिम अवसर के रूप में स्वीकार करना चाहिए और इसमें निहित संदेश को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। अल्पग्रास चंद्रग्रहण
चैत्री पूर्णिमा 25 अप्रैल
स्पर्श (प्रारंभ) : देर रात 1.22 बजे
मोक्ष (समाप्ति) : देर रात 1.53 बजे
अवधि (पर्वकाल) : 31 मिनट