शिष्य का क्या मतलब है ? शिष्य वह है जो अपने जीवन को उत्कर्ष की और ले जाए, जो मोह और अज्ञान- से अपने आपको बाहर निकालना चाहता है, ऐसे शिष्य को गुरु यदि उपदेश देता है तो उसे कुछ लाभ भी होता है। जिसके जीवन में ऊपर उठने की तमन्ना ही नहीं है और जो न अज्ञान को दूर करना चाहे, उसे गुरु के पास रहने पर भी कोई लाभ नहीं होता। वह गुरु के पास बड़े ग़लत कारणों से टिका है ज्यादातर ऐसे लोग आते हैं।
अमेरिका में यह बहुत देखने को मिला। हम इतनी लंबी यात्रा करके गए और लोग आकर कहते कि, ‘हम तो आपको देखने आए हैं। जिन्हें रोज सुबह टी.वी. पर देखते हैं, आज ज़रा सामने से देखने आए हैं।’ यह तो कोई कारण नहीं हुआ किसी संत के पास जाने का। वे इसलिए हमारे पास नहीं आना चाह रहे कि उन्हें हमारे ज्ञान से कोई मतलब है, बल्कि इसलिए कि इनके पास कोई अफसर आता है, वकील आता है, कोई राजनैतिक नेता आता है , वे इसलिये पास आना चाहते हैं। यह तो सही कारण नहीं हुआ। यह तो चेले के लक्षण हैं। वे कहते कि इनकी बड़ी प्रसिद्धि है। अब हम मशहूर हैं तो इससे तुम्हे क्या लाभ?
यदि बदनाम हैं तो क्या ? चेला गलत कारणों से गुरु के पास जाता है और शिष्य सही कारणों से जाता है। शिष्य की पहली सिद्धि यह है कि वह अपने जीवन में श्रेष्ठता, ज्ञान, प्रेम, भक्ति और सात्विकता बढ़ाना चाहता है, इसके लिए वह किसी सद्गुरु संत के पास जाता है । जिसकी अभी भी वृत्तियाँ बहिर्मुखी हैं वह शिष्य नहीं है। जिसका मन अंतर्मुखी नहीं, जो ध्यान, साधना, प्रार्थना के लिए समय नहीं निकालता; वह शिष्य नहीं है।आनंदमूर्ति गुरुमां