ओशो॥
अभी तक जगत में मनुष्य के शरीर जैसा अद्भुत यंत्र कोई भी नहीं है। बहुत सूक्ष्म, बहुत विराट- सब उसमें समाहित है। और उसमें अनंत शक्तियां भरी पड़ी हैं -जो सब जाग जाएं तो आपके जीवन में अनंत द्वार खुल जाते हैं। आप स्वयं एक छोटे-मोटे विश्व हैं। लेकिन शरीर मालिक हो, तो आप सिर्फ गुलाम हैं। और हालत ऐसी है, जैसे गाड़ी आगे हो और बैल पीछे बंधे हों -तो कहीं कोई जाना नहीं होता। आप बहुत चीखते हैं कि कहीं जाना जरूरी है, यात्रा करनी जरूरी है, मंजिल पर पहुंचना चाहिए, समय नष्ट हो रहा है। पर काम आप ऐसा किए हैं कि समय नष्ट होगा ही। बैल पीछे बंधे हैं, गाड़ी आगे बंधी है। धक्का-मुक्की में गाड़ी उलटी टूटती है, बैल परेशान होते हैं, कहीं कोई यात्रा नहीं होती।
धर्म की साधना आपका आनंद हो। आनंद अंत में नहीं, पहले चरण पर भी हो। आखिर में मिलेगा, ऐसा नहीं, वह आज भी हो। उत्सव पूर्वक नाचते-गाते प्रसन्न उस तरफ बढ़ें तो शरीर को आप जीत लेंगे। क्योंकि शरीर की जो बुनियादी तरकीब है, उसके विपरीत आपने एंटीडोट विपरीत औषधि तैयार कर ली। शरीर उदास करके आपको पराजित कर देता है। प्रसन्न रह कर आप शरीर के मालिक हो सकते हैं।
वे लोग प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं, जो कामदेव की कानाफूसी पर कान देते हैं। कामदेव से जो बचते हैं, उनकी हालत देखें- वे प्रसन्न नहीं दिखाई पड़ते। जाएं साधुओं को देखें, वे मरने के पहले मर गए हैं। यह कोई प्रसन्नता नहीं है। इनको क्या रोग लग गया है, ये कामदेव से लड़ रहे हैं।