हॉरर फिल्म्स को लेकर बॉलिवुड अब ओपन होने लगा है और एक्सपेरिमेंटल भी। हालांकि अभी भी टेक्नीक से ज्यादा यहां लोग बंधे माइंडसेट से चलते हैं और ‘एक थी डायन’ इसी का उदाहरण है। कहानी का दौर आज का है, लेकिन फोकस है ऐसी डायन पर जिसके पैर उल्टे हैं, जिसकी ताकत उसकी चोटी में है और जो रात की रानी है। हमारी लोक कथाओं में चुड़ैलों और पिशाचों का जिक्र खूब आता है। अब ये हैं या नहीं, इसको लेकर सभी की अपनी सोच है। हालांकि फिल्म के अंत में भी इस बात को गोलमोल ही करके बताया गया है कि अच्छाई और बुराई, दोनों इंसान के अंदर हैं। अब यह उस पर है कि वह किस राह पर चलता है। कहानी को पिरोया अच्छी तरह गया है, लेकिन कुछ इफेक्ट्स और होते, तो फिल्म का थ्रिल फैक्टर बढ़ जाता।
कहानी : बोबो (इमरान हाशमी) एक मशहूर जादूगर है और अपनी गर्लफ्रेंड तमारा (हुमा कुरैशी) के साथ खुश है। ये दोनों शादी करके एक बच्चे को अडॉप्ट करने की तैयारी में भी हैं कि इमरान के मैजिक शो के दौरान कुछ प्रॉब्लम्स शुरू हो जाती हैं। उसे आवाजें सुनाई देने लगती हैं, जिससे शो में एक्सिडेंट होने लगते हैं। उसे अपने पास्ट की कुछ बातें याद आती हैं और वह एक साइकॉलजिस्ट से मिलता है, जिसने उसके बचपन में भी उसका ट्रीटमेंट किया था। हिप्नोटाइज तकनीक से वह अपने बचपन के बारे में जान पाता है। उसे उसके पापा से शादी करके उसकी बहन और पापा को मारने वाली डायन (कोंकणा) के सच का पता चलता है। हालांकि उसकी बातों को सब वहम मानते हैं। इसी बीच वह तमारा से शादी कर लेता है। इसके बाद कहानी में नया ट्विस्ट आता है लीजा दत्त (कल्कि) की एंट्री से। उसे लेकर बोबो को गलतफहमी हो जाती है, लेकिन जब सच उसके सामने आता है, तो वह हैरान रह जाता है।
ऐक्टिंग: इमरान हाशमी का काम अच्छा है। तीनों हीरोइनों में हुमा कुरैशी के हिस्से में सबसे ज्यादा स्क्रीन स्पेस आया है। तमारा के रोल के लिए वह अच्छी चॉइस साबित हुई हैं। कोंकणा सेनशर्मा अर्से बाद पर्दे पर आई हैं और ऐक्टिंग के मामले में हमेशा की तरह इंप्रेसिव रही हैं। कल्कि बेहतर हो रही हैं। हालांकि सबसे शानदार रहे हैं इमरान के बचपन का रोल करने वाले विशेष तिवारी, जिनके कंधों पर फर्स्ट हाफ टिका है।
डायरेक्शन: डायरेक्टर कानन अय्यर की यह पहली फिल्म है। फिल्म की शुरुआत उन्होंने बहुत सधे तरीके से की है। इंटरवल तक फिल्म आपको बांधे रखती है। हालांकि डर का फिल्म में ज्यादा स्कोप नहीं है, लेकिन कुछ सीन सिहरन पैदा कर देते हैं। सेकंड हाफ खिंचा हुआ है। यहां कानन की पकड़ ढीली हो गई है। सभी डायनों व पिशाचों के बीच इमरान का पहुंचना और उनसे फाइट करना और इंप्रेसिव बनाया जा सकता था।
संगीत: फिल्म में कोई यादगार गाना नहीं है। काली-काली अंखियां और यारम पसंद आते हैं, लेकिन बाहर निकलने के बाद इनके याद रहने की गुंजाइश कम है। ‘तोते उड़ गए’ फनी है।
क्यों देखें : अगर बॉलिवुड से अच्छी हॉरर फिल्म देने की उम्मीद रखते हैं, इमरान हाशमी को ‘राज 3′ के बाद फिर ऐसी फिल्म में देखना चाहते हैं, बॉलिवुड हीरोइनों के आम लटके-झटकों से हटकर उनका कोई पैकेज चाहिए, तो यह फिल्म देख सकते हैं।