नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। आतंकवादी संगठन, युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया के बांग्लादेश से यहां लाए जाने के बाद यह कयासबाजी लगातार जारी है कि वह आतंकवादी संगठन और केंद्र सरकार के बीच बातचीत में शामिल हो सकता है। इस बीच वार्ता समर्थक गुट के एक वरिष्ठ सदस्य और संगठन के स्वयंभू ‘विदेश सचिव’ सशाधर चौधरी ने कहा है कि इससे शांति प्रक्रिया में कोई गुणात्मक बदलाव भले न आए, लेकिन इससे वार्ता को वैधानिकता तो मिलेगी।
नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। आतंकवादी संगठन, युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया के बांग्लादेश से यहां लाए जाने के बाद यह कयासबाजी लगातार जारी है कि वह आतंकवादी संगठन और केंद्र सरकार के बीच बातचीत में शामिल हो सकता है। इस बीच वार्ता समर्थक गुट के एक वरिष्ठ सदस्य और संगठन के स्वयंभू ‘विदेश सचिव’ सशाधर चौधरी ने कहा है कि इससे शांति प्रक्रिया में कोई गुणात्मक बदलाव भले न आए, लेकिन इससे वार्ता को वैधानिकता तो मिलेगी।
चेतिया को 11 नवंबर को बांग्लादेश ने भारत को सौंपा था। वह इस समय सीबीआई की हिरासत में है। इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि उसे असम समस्या सुलझाने के लिए चल रही शांति प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है।
सशाधर चौधरी, जिनका वास्तविक नाम सैलन चौधरी है, ने आईएएनएस से कहा, “मुझे नहीं लगता कि चेतिया को शांति प्रक्रिया में शामिल करने से मौजूदा सूरतेहाल पर कोई कोई गुणात्मक असर पड़ेगा। लेकिन, अगर वह इस प्रक्रिया का हिस्सा बनता है तो इसे अभी के मुकाबले अधिक वैधानिकता मिलेगी।”
चौधरी ने कहा कि 2010 से जारी शांति प्रक्रिया में सरकार को उन मुद्दों की जानकारी दे दी गई है जिन पर सहमति बन सकती है। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह असम मसले का हल चाहती है या नहीं।
हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने कहा था कि सरकार जल्द ही वार्ता को एक नतीजे तक पहुंचाएगी। उल्फा के वार्ता समर्थक गुट, केंद्र और असम सरकार के बीच वार्ता का अगला दौर नई दिल्ली में 24 नवंबर को होना है।
माना जा रहा है कि जिस एक मुद्दे पर पेंच फंसा हुआ है, वह है छह समुदायों को आदिवासी दर्जा दिया जाना। इनमें ताई अहोम, कोच राजबंशी, चुटिया, मोरन, मुट्टोक और आदिवासी चाय बागान श्रमिक शामिल हैं, जिन्हें अन्य राज्यों में आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है। इनकी आबादी असम की कुल आबादी का 20 फीसदी है। ये ऊपरी असम के 40 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
चौधरी से पूछा गया कि क्या चेतिया के प्रत्यर्पण से उल्फा की सैन्य शाखा के ‘कमांडर इन चीफ’ परेश बरुआ अलग-थलग पड़ जाएंगे। उन्होंने कहा, “इस बारे में कुछ कहने के लिए मैं सही व्यक्ति नहीं हूं। हमारा उनसे कोई संबंध नहीं है। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि विचारधारा के स्तर पर हमारे बीच कोई मतभेद है। हमारे बीच मतभेद की सिर्फ एक वजह, सरकार से वार्ता है।”
उल्फा के पूर्व ‘डिप्टी कमांडर इन चीफ’ राजू बरुआ उर्फ हितेश कलिता से आईएएनएस ने पूछा कि क्या वार्ता की नाकामी की स्थिति में परेश बरुआ का समर्थन किया जाएगा। राजू ने कहा, “हम संगठन की केंद्रीय इकाई हैं और हम अपने वादे पर कायम हैं कि हम सरकार के साथ बातचीत करेंगे।”