नई दिल्ली। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जांच कर रही जेपीसी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दे दी है। जेपीसी ने तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा को जिम्मेदार बताते हुए कहा, उन्होंने पीएम को गुमराह किया। साथ ही कहा, 2जी आवंटन पर लिए गए फैसले में वित्त मंत्री के खिलाफ कुछ भी गलत नहीं मिला। इस रिपोर्ट पर अगली बैठक में रार के आसार हैं।
जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के आकलन को खारिज करते हुए इसे व्यर्थ बताया है। गुरुवार को जेपीसी के सदस्यों को सौंपी गई मसौदा रिपोर्ट में राजा को 7 जनवरी 2008 के प्रेस नोट में फर्जीवाड़े का भी दोषी बताया गया है। तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल जीई वाहनवती के देखने के बाद प्रेस नोट में बदलाव किया गया था। सीबीआइ का दावा है कि उनके पास इसके फोरेंसिक सुबूत मौजूद हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले आओ, पहले पाओ की प्रक्रिया महज दिखावा थी और मौजूदा नीति की अवहेलना की गई। जेपीसी इस निष्कर्ष पर भी पहुंची कि दूरसंचार विभाग द्वारा तय प्रक्त्रिया के बारे में पीएम को गुमराह किया गया। साथ ही उन्हें भेजे पत्रों में राजा ने पारदर्शिता के जो आश्वासन दिए थे, वे मिथ्या साबित हुए।
मार्च 2011 में गठित 30 सदस्यीय जेपीसी ने कहा है कि हालांकि ट्राई और सरकार द्वारा गठित समितियों द्वारा समय-समय पर स्पेक्ट्रम कीमत को लेकर सिफारिशें की गई और वित्त मंत्री व पीएमओ ने इन पर विचार भी रखे, लेकिन 2जी आवंटन के पक्ष में सरकार की तरफ से कोई नीति तय नहीं की गई। बल्कि ट्राई, दूरसंचार विभाग, वित्त मंत्रालय और योजना आयोग की ओर से ज्यादातर समय स्पेक्ट्रम की तार्किक कीमत पर सहमति रही। ताकि सेवा प्रदाताओं को समान अवसर मिले।
रिपोर्ट में कहा गया कि लेटर्स ऑफ इंटेंट पर फैसला लेते वक्त यह ध्यान देना चाहिए था कि सिर्फ वही कंपनियां इंट्री फीस जमा करें, जो कि अनुपलब्धता और देरी को वहन करने में सक्षम हों। जबकि संचार मंत्री ने फैसला लिया कि 25 सितंबर तक आवेदन करने वालों को एलओआइ जारी किया जा सकता है। समिति के विचार में यह गलत था। इसके बाद जब आवेदन की तिथि बढ़ाकर 1 अक्टूबर 2007 की गई तो स्पेक्ट्रम की उपलब्धता को देखना चाहिए था और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए इसका प्रकाशन भी करना चाहिए था।