रीतू तोमर
रीतू तोमर
नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। बचपन में गाय पर निबंध तो हम सभी ने लिखा होगा, लेकिन गाय बार-बार सुर्खियां बनेगी, कभी सोचा न था। लेकिन इन दोनों परिस्थितियों में खासा अंतर है। बचपन में गाय पर निबंध लिखने का उद्देश्य महज लिखना सीखना था, लेकिन अब यही राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
एक गाय जिसे अब तक हम दुधारू पालतू पशु के रूप में जानते आए हैं, अब उसकी चर्चा राजनीतिक गलियारों में होने लगी है। देश में अब गाय राजनीति का हिस्सा बन गई है। मौजूदा समय में गाय किस तरह राजनीति का केंद्र बन चुकी है, यह बहुत दिलचस्प है। अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए नेता जनता के बीच अपना ‘गोप्रेम’ दिखाने का कोई भी मौका छोड़ने से नहीं चूक रहे।
इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां ने गोहत्या पर कहा कि देश में गाय का दर्जा पा चुकी गाय जब दूध देना बंद कर देती है या बूढ़ी हो जाती है तो गाय को बेचने के बजाय उसकी रक्षा एवं सेवा करनी चाहिए। उनका मानना है कि इस तरह के कदमों से गोहत्या स्वत: ही बंद हो जाएगी। उन्होंने बाबर काल में गोहत्या के दोषियों के लिए मृत्युदंड के प्रावधान का हवाला भी दिया।
इसके जवाब में उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने तर्क देते हुए कहा कि देश में गोमांस पर प्रतिबंध का कोई कानून ही नहीं है। इस पर कानून बनने के बाद ही प्रतिबंध लगाया जाएगा।
इस बीच पुरी पीठ के संत अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने आजम खां के गोप्रेम को देखते हुए उन्हें एक गाय और बछिया भेंट की, जिसे भुनाने से आजम खां पीछे नहीं रहे। लेकिन सवाल जस का तस बना हुआ है कि गोहत्या, गोमांस रोकने की बात करने वालों को देश में गायों की दशा पर भी ध्यान देना चाहिए। मृत गायों और अफवाहों को सुनकर माहौल बिगाड़ने या बिगड़ने देने से पहले जीवित गायों की स्थिति सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाने जरूरी हैं।
घर में पाली जाने वाली गायों और गौशालाओं में रखी जाने वाली गायों के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार पर गौर करने की जरूरत है। एक लंबे अर्से से गायों से अधिक मात्रा में दूध दोहने के लिए विषैले रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, लेकिन इसे पीछे की वास्तविकता गायों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को उजागर करती है।
भारत में औसतन एक गाय लगभग एक हजार लीटर दूध देती है, लेकिन गायों से अत्यधिक मात्रा में दूध प्राप्ति के लिए एक प्रतिबंधित दवा ऑक्सीटोक्सीन के इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है जो न सिर्फ गायों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि इस दूध के सेवन पर मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव हो रहा है। गायों से कम समय में अधिक दूध लेने के लिए अधिक चारा खिलाया जाता है, जिससे गायों की जल्दी मौत हो जाती है।
डेयरी उद्योग अधिक लाभ कमाने की जुगत में एक सोची-समझी रणनीति के तहत गायों के जल्द से जल्द गर्भाधान जैसे हथकंडे का भी इस्तेमाल करते हैं।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत, अमेरिका और जर्मनी के कई डेयरी फर्मो में गायें पांच साल की समयावधि में ही दम तोड़ देती हैं। गायों का पालन स्वार्थ बन गया है। गलियों, सड़कों में घूमने वाले मवेशियों में सर्वाधिक संख्या गायों की होती है। जिनकी जाने-अनजाने सड़क दुर्घटनाओं में मौत हो जाती है। सड़कों पर घूमती या फिर कूड़े के ढेर पर मंडराती गायों को देखने का मंजर कोई नया नहीं है। हमारे देश में प्लास्टिक खाने से गायों की मौत सबसे अधिक होती है। क्या इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाने चाहिए?
दिल्ली के बवाना गांव की श्रीकृष्ण गौशाला के चेयरमैन सुभाष अग्रवाल देश में गायों की व्यथा पर चिंतित होते हुए आईएएनएस को बताते हैं, “देश में आलम यह है कि लोग कुत्ते-बिल्लियों को पालना पसंद करते हैं लेकिन गायों की ओर विशेष ध्यान नहीं देते। हमारे यहां 7,000 गायों की देखरेख की जाती है। सड़कों पर लावारिस घूमने वाली या सड़क दुर्घटनाओं में घायल हो चुकी गायों के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए लिफ्ट वाली मेडिकल वैन गौरथ और चिकित्सकों का एक दल सदैव तैयार रहता है।”
गायों से अधिक दूध दोहकर मुनाफा कमाने के अलावा देश में गायों की तस्करी कर उन्हें बेचने का धंधा भी काफी सक्रिय है। देश में लगभग 3,600 बूचड़खाने तो नगर पालिकाओं द्वारा ही चलाए जाते हैं। इसके अलावा 42 बूचड़खाने ऑल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्ट एसोसिएशन द्वारा संचालित हैं। इसके इतर अवैध रूप से इस धंधे में लगे ऐसे कई बूचड़खाने हैं, जहां गायों को बेच दिया जाता है और यहां क्या होता है, यह बताने की जरूरत नहीं है।
जयुपर की हिंगोनिया गौशाला में उजागर गौ तस्करी का मामला सबके समक्ष है कि वहां किस तरह से गायों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई है। ऐसे में देश में गायों की बढ़ रही तस्करी के मामलों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
सुभाष अग्रवाल का कहना है कि अमूमन, जब गाय दूध देना बंद कर देती हैं या बूढ़ी हो जाती हैं तो उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है या कसाइयों को 300 से 600 रुपये में बेच दिया जाता है। हमारे यहां कसाइयों के चंगुल से बचाकर लाई गई कई गायें हैं, जिन मवेशियों का दूध पीकर हम आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। उसके प्रति हमारी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है।
स्पष्ट है कि सरकार को देश में बाघों को बचाने की तरह गायों को बचाने के लिए भी अभियान चलाना चाहिए।