काठमांडू, 6 नवंबर (आईएएनएस)। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत द्वारा नेपाल में मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाने की शुक्रवार को आलोचना की।
भारत ने पहली बार किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर नेपाल के एक दशक लंबे संघर्ष के दौरान युद्ध अपराधों के मुद्दे को उठाया और नेपाल से प्रभावी तौर पर संक्रमणकालीन न्याय तंत्र को अपनाने का आग्रह किया।
संवाददाताओं से बातचीत में ओली ने सवाल उठाया कि नेपाल की शांति प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी से भारत कैसे अनजान रह सकता है?
उन्होंने कहा कि भारत ने इससे पहले नेपाल के संक्रमणकालीन न्याय तंत्र या इसकी प्रभावकारिता पर अपने विचार को सार्वजनिक नहीं किया। इस मुद्दे को सीधे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठा दिया।
भारतीय प्रतिनिधि ने जेनेवा में कहा कि नेपाल को “सत्य और सुलह आयोग का प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना चाहिए और हिंसक विद्रोह के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने सहित इस आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करना चाहिए।”
इस बयान को नेपाल के प्रति भारत के नकारात्मक रवैये के एक और उदाहरण के तौर पर लिया जा रहा है।
बिना किसी का नाम लिए ओली ने कहा, “कुछ दिन पहले, हमारे एक पड़ोसी देश के नेता ने सार्वजनिक तौर पर धमकी दी थी कि भारत, नेपाल को अपनी ताकत दिखा देगा।”
ओली ने कहा, “अब वे एक दशक पुराने मुद्दे को हवा दे रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि नेपाल ने सत्य और सुलह आयोग के गठन के साथ ही युद्ध अपराध, गायब हुए लोगों, हत्याओं, उत्पीड़न, दुष्कर्म जैसे मामलों की जांच के लिए एक अन्य आयोग का भी गठन किया था।
ओली ने कहा कि नेपाल ने सशस्त्र संघर्ष को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी आमंत्रित किया था। उन्होंने कहा, “हमने अतीत में युद्ध का सामना किया और तब हमें अहसास हुआ कि हर समय युद्ध करना संभव नहीं। इसीलिए हमने शांति प्रक्रिया की पहल की।”
उन्होंने कहा, “उस समय एक-दूसरे से संघर्षरत पक्ष आज एक-दूसरे के साथ हैं। वे मिलकर लोकतांत्रिक समाधान कर रहे हैं। इससे भी कोई नहीं फर्क पड़ता कि वे सरकार में हैं या नहीं। शांतिपूर्ण तरीके से सुधार में लगे हुए हैं।”