शीत युद्ध की समाप्ति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अप्रासंगिक होने के बाद भारत और अफ्रीकी देशों का आपसी संवाद न्यूनतम स्तर पर आ गया था। भारतीय विदेश नीति में इन देशों की अहमियत कम हो गई थी। दूसरी ओर चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अफ्रीका में अपनी गतिविधियां बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
शीत युद्ध की समाप्ति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अप्रासंगिक होने के बाद भारत और अफ्रीकी देशों का आपसी संवाद न्यूनतम स्तर पर आ गया था। भारतीय विदेश नीति में इन देशों की अहमियत कम हो गई थी। दूसरी ओर चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अफ्रीका में अपनी गतिविधियां बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इन्होंने वैश्वीकरण व उदारीकरण की अर्थव्यवस्था में अफ्रीका को शामिल किया। अपने लाभ का इंतजाम किया। अफ्रीका प्राकृतिक संपदा की ²ष्टि से विविधतापूर्ण संपदा से भरा क्षेत्र है। अन्य प्रमुख देशों ने उसकी अहमियत समझी। भारत इस संबंध में बहुत पीछे रह गया, जबकि अफ्रीकी देशों के साथ हमारे ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। यहां आजादी की अलख महात्मा गांधी ने जगाई थी।
आज भी महात्मा गांधी यहां सर्वाधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय महापुरुष माने जाते हैं। अनेक अफ्रीकी देशों में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। वहां की अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के लोगों का उल्लेखनीय योगदान है।
लेकिन पिछले एक दशक में इन देशों की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कमी को दूर करने का प्रयास किया। इस दिशा में इंडिया-अफ्रीका फोरम सम्मेलन को ऐतिहासिक पड़ाव माना जा सकता है।
अफ्रीका के बाहर इन देशों का इतना बड़ा सम्मेलन पहली बार हुआ। यह उपलब्धि भारत के खाते में दर्ज हुई। इसे अफ्रीकी देशों के साथ भारत के आर्थिक व व्यापारिक रिश्तों तक सीमित नहीं समझना चाहिए, वरन इसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का दावा भी मजबूत हुआ है। जिस देश की आवाज पर करीब पचपन देश एक मंच पर आ सकते हैं, वह वास्तव में सुरक्षा परिष्द की स्थायी सदस्यता का दावेदार है।
यह भी उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी देशों के आर्थिक क्षेत्र में चीन के प्रति नाराजगी देखी गई। चीन व अफ्रीका में सवा दो सौ अरब डॉलर का व्यापार है, लेकिन वहां यह धारणा बन रही है कि चीन अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। स्वास्थ्य के लिए खतरनाक वस्तुओं से बाजार को पाट देने में उसे कोई संकोच नहीं होता। ऐसी वस्तुओं के दाम कम होते हैं, लेकिन उसकी प्राय: सभी वस्तुएं स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव डालती हैं।
विश्व के कई देश उसकी असलियत को समझाने लगे हैं। यह स्थिति भारत के लिए अच्छी है। पिछली सरकार इस स्थिति को समझने में नाकाम रही। पिछले एक दशक में चीन को वहां सर्वाधिक हस्तक्षेप करने का अवसर मिला, जबकि करीब दो दर्जन अफ्रीकी देशों में भारत अपने राजदूत ही नियुक्त नहीं कर सका था। इससे जाहिर था कि अफ्रीका हमारी प्राथमिकता में नहीं था।
इन देशों को लगने लगा था कि भारत वैश्विक मामलों में समर्थन लेने के लिए ही उसकी ओर देखता है, लेकिन दिल्ली में हुए सम्मेलन ने इस अवधारणा को बदल दिया है। इस सम्मेलन के दूरगामी परिणाम क्या होंगे, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यहां से भारत और अफ्रीका ने अनेक मुद्दों पर एक साथ चलने का संदेश अवश्य दिया है। इससे दोनों को ही लाभ होगा।
चीन वहां अनेक परियोजनाएं चला रहा है। अब भारत भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है। सिंचाई, कृषि, विनिर्माण क्षमता, अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, ढांचागत विकास आदि अनेक क्षेत्रों में भारत अफ्रीकी देशों को सहयोग देगा। इन क्षेत्रों में अनेक योजनाएं चलाई जाएंगी।
अगले पांच वर्षो में रियायती दर पर दस अरब डॉलर के ऋण और साठ करोड़ रुपये की अनुदान सहायता भारत के द्वारा दी जाएगी। इसमें दस करोड़ डॉलर का भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य कोष शामिल है। शिक्षा के क्षेत्र में भी आपसी रिश्तों को मजबूत बनाया जाएगा।
भारत में अफ्रीकी देशों के छात्रों के लिए पचास हजार छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की गई है। इससे भारतीय व अफ्रीकी देश के छात्रों को एक-दूसरे के विचार-संस्कृति समझने का अवसर मिलेगा। सहयोग का क्षेत्र शिक्षा, शिक्षण संस्थान और विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रहेगा, वरन भारत विभिन्न अफ्रीकी देशों में सौ क्षमता निर्माण संस्थानों की स्थापना करेगा। स्थापित होने के बाद ये संस्थान व्यापक रूप से अपना कार्य करेंगे, जिसका लाभ अफ्रीकी आबादी के बड़े हिस्से को मिलेगा।
अफ्रीकी देशों में भारत की ही भांति सौर ऊर्जा की असीम संभावना है। ऊर्जा के परंपरागत स्रोत सीमित अवधि तक है। ऐसे में समय रहते और ऊर्जा जैसे विकल्पों पर काम करना होगा। इस ²ष्टि से भारत और अफ्रीकी देश साझा प्रयास कर सकते। यह अच्छी बात है कि सम्मेलन में सौर ऊर्जा का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। इससे भविष्य में भारत व अफ्रीकी देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना संभव हो सकेगा नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका में सौर ऊर्जा समृद्ध देशों के साथ एक गठबंधन में शामिल होने का आान किया।
इसी प्रकार सम्मेलन में अंतरिक्ष क्षेत्र के सहयोग पर भी सहमति बनी। भारत अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियां और प्रौद्योगिकी अफ्रीकी देशों को उपलब्ध कराएगा। भविष्य में समूचे अफ्रीका को ई-नेटवर्क से जोड़ने की डॉ. कलाम की कल्पना साकार हो सकेगी।
यह भी संयोग है कि अगले महीने नैरोबी में विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक होगी। सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा तथा कृषि सब्सिडी जैसे मुद्दों पर भारतीय विचारों को उचित माना गया। इसका प्रभाव व्यापार संगठन की बैठक में दिखाई देगा। जाहिर है कि भारत-अफ्रीका सम्मेलन केवल संख्या की दृष्टि से ही नहीं, वैचारिक व व्यापारिक आधार पर भी ऐतिहासिक तथा उपयोगी साबित हुआ। (आईएएनएस/आईपीएन)