भोपाल, 14 अप्रैल (हि.स.)। आज की मीडिया मनुष्य के अंदर की इच्छा का विस्तार है। संवाद करने के लिए ही मानव ने कई अविष्कार किए हैं। तकनीकी अविष्कार तो केवल संचार की व्यापकता के माध्यम हैं। इस विस्तारित मीडिया के प्रति हमारा दायित्व क्या है और इसका उपयोग कैसे करना है? यह हम सभी को स्वयं तय करना होगा। विकास की निरंतरता प्रकृति का मौलिक धर्म है, लेकिन इस प्रकृति प्रदत्त विकास को समझकर यदि मानव आगे बढ़ेगा, तभी सार्थक परिणाम आएंगे।
उक्त बातें मीडिया कार्यशाला में ‘मीडिया के विविध आयाम, संभावनाएं एवं सीमाएं (परस्पर पूरकता)’ विषय पर पत्रकारिता के विद्यार्थियों व नवागत पत्रकारों को प्रथम सत्र के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कही।
विश्व संवाद केंद्र द्वारा जन अभियान परिषद् सभागार में आहूत एक दिवसीय युवा पत्रकारों के लिए रखी गई मीडिया कार्यशाला में प्रो. कुठियाला ने कहा कि आपके मन का विशिष्ट भाव ही आपको पत्रकारिता करने के लिए प्रेरित करता है। जन्म से मिले सामाजिक सरोकारों के संस्कार ही आपको समाज के प्रति अपने दायित्वों के निर्वाहन के लिए प्रेरित करते हैं।
मीडिया को आप किस नजरिए से देखते हंै इसे केवल आय का साधन मानते हैं अथवा सेवा की कर्म स्थली यह आपकी दृष्टि पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि सिर्फ आर्थिक सोच लेकर चलने वाले मीडिया क्षेत्र में पूरी तरह सफल नहीं माने जा सकते, क्योंकि अर्थ की एक सीमा है, लेकिन जब आप पत्रकारिता को आत्मविकास का ध्येय मानकर चलते हैं, तो भले ही आप आर्थिक रूप से संपन्न न हो सकें, किन्तु आत्मिक और वैचारिक रूप में आपका यश सदैव जीवित रहता है।
प्रो. कुठियाला ने कहा कि पत्रकारों के सही और गलत के अर्थों में किसी और की इच्छा पर नहीं, बल्कि स्वयं के आंतरिक उत्तर पर निर्भर रहना चाहिए उसे स्वयं से पूछना चाहिए कि वह जो खबर लिख रहा है वह कितनी सार्थक और परिणामकारी होगी। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है। कई लोग मिलकर किसी पूर्णता को स्वरूप प्रदान करते हैं। यही मीडिया के साथ है। पत्रकारिता के विविध आयामों में जब अलग-अलग बिन्दु और विषय एक सूत्र में गुथ जाते हैं, तभी निर्णायक प्रभाव उत्पन्न होता है। प्रो. कुठियाला ने युवा पत्रकारों से सकारात्मक सोच से प्रेरित होकर पत्रकारिता कर्म करने का आह्वान किया।
सामाजिक धर्म के डर से झुकते हैं मालिक : सरदाना
कार्यशाला के द्वितीय सत्र में जी-न्यूज के डिप्टी एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर रोहित सरदाना ने एंकरिंग एवं रिपोर्टिंग (सिद्धांत एवं व्यवहार) पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आप हमेशा अपनी मर्जी का सच सबके सामने नहीं ला सकते। मीडिया का यह कड़वा सच है, लेकिन ऐसा दस प्रतिशत मामलों में होता है। नब्बे प्रतिशत तो आपको अपनी खबर को लेकर पूरी स्वतंत्रता दी जाती है। आप इस नब्बे प्रतिशत में सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों का पूरी तरह निर्वाहन कर सकते हैं।
व्यावसायिक मालिक भी सामाजिक धर्म के डर से आपके सामने झुकते हैं, वे आपकी लायी गई खबर को दिखाने के लिए विवश होते हैं, इसलिए इस बात से डरने की जरूरत नहीं कि मीडिया कार्य में आने के बाद आपको बहुत समझौते करने पड़ेंगे। आप वाकई कुछ अच्छा करना चाहते हैं, समाज के बहुत बड़े तबके का हित उससे जुड़ा होता है तो कोई ऐसी रिपोर्ट की खिलाफत नहीं करता।
उन्होंने अन्ना हजारे, बाबा रामदेव आंदोलन व प्रिंस के बोरवेल में गिरने संबंधी अपने अनुभव सुनाए। सरदाना का कहना था कि राजनेता देश के आम आदमी की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं कि वे बहुत जल्दी बातों को भूल जाते हैं। पत्रकार के नाते हमे ऐसे पुराने विषयों को भी बार-बार उठाना चाहिए, जो समाजहित से जुड़े हों अथवा उनसे सामाजिक ताना-बाना कहीं न कहीं प्रभावित होता है।
सरदाना ने एंकर की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि एंकर जैसा कुछ नहीं होता। आप रिपोर्टर, प्रोड्यूसर, प्रोग्राम प्रोड्यूसर आदि कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन उसे साथ आपकी भाषा, व्यवहार और खबर को देखने के नजरिए के साथ आप दिखते भी ठीक हैं, तो यह क्वॉलिटी आपको एंकर बना सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के झांसे में नहीं आना चाहिए जो एंकर बनाने का दम भरते हैं। ऐसे संस्थान या लोग केवल आपकी पॉलिस कर सकते हैं, किन्तु व्यक्तिगत स्तर पर आपको ही बहुत कुछ सीखना होगा।
उन्होंने कहा कि आप यदि अच्छे रिपोर्टर हैं, तो अच्छे एंकर भी बन सकते हैं। सरदाना का युवा पत्रकारों को यही संदेश था कि जो भी करे मन लगाकर करें। व्यवहारिकता को नजर अंदाज करके आप पत्रकारिता नहीं कर सकते। भूखे पेट भजन नहीं होता यही व्यावसायिकता का तकाजा है। वास्तव में भजन करने के लिए स्वयं योग्य बनाना होता है। सरदाना ने युवाओं की सलाह दी की वे पत्रकारिता में पहचान के लिए आए हैं इसलिए इस प्रोफेशन में स्वयं की पहचान के साथ अपनी जिम्मेदारियां भी समझें। अपने रूटीम काम से वक्त निकाल कर एक सप्ताह या 15 दिन में ऐसी स्टोरिया भी दें, जो हमें समाज से सीधे जोड़ती हों।
सरदाना का यह भी कहना था कि आप अपने को इतना केपेबल बनाए कि लोग आपकी सुने, तभी प्रभावकारी परिणाम प्राप्त होंगे। बाबा रामदेव जैसे लोगों ने स्वयं को इस मुकाम पर पहुंचाया है, जिसके कारण वे क्रिकेट, राजनीति, धर्म, योग पर समाज रूप से बोलते हैं और सभी उन्हें सुनते हैं। कार्यशाला में युवा पत्रकारों द्वारा पूछे एक प्रश्न में सरदाना ने कहा कि आपकी सीमाएं और अधिकार आप स्वयं तय करते हैं। पत्रकार की सीमा समाज के हितों को देखकर तय होती हैं यह ध्यान में रखकर हमें स्वयं की लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए।
पत्रकारिता को आजीविका मानकर अपनाएं : उपाध्याय
कार्यशाला के अंतिम सत्र में वरिष्ठ पत्रकार एवं नवदुनिया, भोपाल के संपादक गिरीश उपाध्याय ने पत्रकार का कौशल विकास विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हम पत्रकारिता को अजीविका मानकर अपनाए। जो इसे मिशन या अन्य कुछ मानकर आते हैं उन्हें कई व्यवहारिक कठिनाइयां आती हैं और अंतत: हमें सामाजिक दायित्वों के अलावा अपनी अजीविका की पूर्ति की मानसिकता से ही इस क्षेत्र में काम करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि हमारे खबर की सार्थकता तभी है जब हम किसी समाचार को प्रशासन द्वारा नजर अंदाज किए जाने के बावजूद सभी का केंद्र बिन्दु बनाने में सफलता पाते हैं। वहीं उन्होंने संवाद समितियों की दायित्वपूर्ण पत्रकारिता पर प्रकाश डाला। उपाध्याय का कहना था कि समाचार एजेंसी से जो भी खबरें दें, वह पूरी छानबीन के बाद ही प्रसारित करें, क्योंकि अखबार आपकी हर बात को ब्रम्हवाक्य मानकर छाप देगा।
उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि खबरों के मामले में उन्हें अपडेट रहना चाहिए। वहीं आपकी सकारात्मक दृष्टि ही आपको मीडिया में प्रमुख स्थान दिलाती है। उपाध्याय ने मीडिया की वर्तमान चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उनका कहना था कि हर साल १५०० विद्यार्थी विवि से पत्रकारिता की डिग्री लेकर निकल रहे हैं और मीडिया खराने प्रतिवर्ष ५-१० प्रतिशत छटनी करती हैं। ऐसे में आपके समक्ष रोजगार पाने का संकट सदैव बना हुआ है।
अत: आपको अभी से स्वयं को तैयार करना होगा कि आप किसी क्षेत्र में अपनी योग्यता सिद्ध कर सकते हैं। पत्रकारिता में प्राय: कार्यरत व्यक्ति अपनी बीट, शहर और घर छोडऩा नहीं चाहते, लेकिन पदोन्नति चाहते हैं। इन सभी से बचते हुए यहां कार्यरत् सभी लोगों को अवसर की तलाश में रहना चाहिए। उपाध्याय का यह भी कहना था कि किसी संस्थान से जल्दी-जल्दी जंप करना भी आपकी छवि पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है।
इसलिए अधिक से अधिक अपना समय किसी मीडिया संस्थान में बिताना चाहिए। उनका कहना था कि इस प्रोफेशन में रहने की अब उम्र अधिकतम ४० साल है। इस उम्र के बाद मीडिया में वही लोग टिके रह सकते हैं, जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी होने के साथ भाषायी ज्ञान रखता हो। यदि आप इस प्रोफेशन में आए हैं, तो यह मानकर चले कि बहुत सी कमियां होने के बाद भी आपने इसे चुना है। इसकी सच्चाइयों को स्वीकार करते हुए आगे नवीन रास्ते बनाने का लक्ष्य आपके सामने होने चाहिए।
इस मीडिया कार्यशाला के अतिथियों ने इस्लाम और ईसाइयत पूर्व विश्व संस्कृति दर्शन विषय पर आधारित स्मारिका का विमोचन किया, जिसकी भूमिका वरिष्ठ पत्रकार राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष एवं स्मारिका के अतिथि संपादक रमेश शर्मा द्वारा रखी गई। वहीं कार्यशाला के प्रथम सत्र का संचालन डॉ. मयंक चतुर्वेदी, द्वितीय सत्र शैलेन्द्र सिंह एवं अंतिम बृजेन्द्र शुक्ल द्वारा किया गया। कार्यशाला का प्रारंभ दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत कुंदन पांडे, सुरेंद्र ठाकरे, सुश्री पारूल, प्रियंक, प्रसंशा, निकिता गिडवानी, पूजा गनवानी और रश्मि यादव द्वारा पुष्प-गुच्छ व श्रीफल द्वारा किया गया। आभार प्रदर्शन मिलन भार्गव ने किया।
कार्यशाला के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय (मप्र-छग संयुक्त) प्रचार प्रमुख नरेंद्र जैन, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विवि में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र पाल सिंह सहित विश्व संवाद केंद्र के संपादक हरिहर शर्मा, प्रबुद्ध भारती के प्रांत सहसंयोजक दीपक शर्मा, धीरेंद्र चतुर्वेदी आदि गणमान्य नागरिक व वरिष्ठ पत्रकार उपस्थित थे।