इंदौर, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में बुद्धिजीवियों की हत्या व बढ़ रही सांप्रदायिक असहिष्णुता के खिलाफ 50 से अधिक साहित्यकारों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाए जाने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता राम माधव ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि ‘अगर साहित्यकारों को राजनीति करनी है तो उन्हें घोषित तौर पर राजनीति करनी चाहिए।’
मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में अगले वर्ष होने वाले सिंहस्थ कुंभ से पहले इंदौर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में हिस्सा लेने आए राम माधव ने सोमवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि दादरी कांड का कुछ लोग राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “सवाल है कि दादरी घटना में धर्म कहां से आ गया? यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, बीफ को लेकर अफवाह हो या कुछ और, एक व्यक्ति की मौत हो जाती है, इस तरह की घटना का अपने देश में कोई स्थान नहीं है। मेरा इस पर सवाल है कि इसमें धर्म कहां से आ गया, बीफ का धर्म से क्या संबंध, बीफ जीवन पद्धति का हिस्सा है, समस्या तब आती है, जब इसे धर्म से जोड़ा जाता है।”
गौरतलब है कि बकरीद के मौके पर उत्तर प्रदेश के दादरी में हिंदू धर्म के कुछ ठेकेदार गोमांस खाने की अफवाह फैलाकर एक गरीब मुस्लिम मोहम्मद अखलाक को घर से से खींचकर ले गए, पहले लात-घूंसों से उसकी पिटाई की। बाद में उसके घर में रखी सिलाई मशीन उठाकर ले आए और उसके सिर पर दे मारा। सिर फटने से उस बेगुनाह की मौत हो गई। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने दादरी का दौरा करने के बाद इसे साजिश नहीं, बल्कि हादसा करार दिया। अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस घटना को सुनियोजित साजिश बताया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस पर अफसोस जताया और देश बढ़ती असहिष्णुता को लेकर सरकार को चेताया।
आरएसएस प्रवक्ता से भाजपा प्रवक्ता बने राम माधव ने आगे कहा कि समस्या तब होती है, जब घटनाओं को अलग-अलग तरीके से जोड़कर उस पर बहस शुरू कर देते हैं, इसके साथ ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए कुछ लोग घटना की गलत व्याख्या करते हैं, और इसी से समाज में तनाव होता है। कुछ लोगों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए दादरी जैसी घटनाओं को हवा दी जा रही है।
ऐसी घटनाओं से आहत साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाए जाने पर माधव ने तल्खी भरे अंदाज में कहा कि कुछ लोगों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए इस घटना को हवा दी जा रही है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसमें कतिपय साहित्यकार भी जुड़ गए हैं, जो सम्मान लौटा रहे हैं। साहित्यकार अपनी वेदना, संवेदना को कलम के जरिए व्यक्त करता है, ये तो राजनीति करने लगे हैं।
साहित्यकारों की संवेदनशीलता का मजाक उड़ाते हुए उन्होंने कहा, “अगर राजनीति करनी है तो घोषित तौर पर करो और कहो कि हम फलां राजनीतिक विचारधारा के हैं, इसलिए राजनीति कर रहे हैं। यह क्या कि साहित्यकार का यह (लिबास) पहनकर घूम रहे हो और कर रहे हो राजनीति, यह गलत बात है।”