नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘कौशल विकास’ अभियान को अपने समर्थन का विस्तार करते हुए देश की शीर्ष स्वास्थ्य देखभाल संस्था नैटहेल्थ ने दिल्ली में 16 अक्टूबर को दूसरी गोलमेज बैठक का आयोजन किया, जहां स्वास्थ्य देखभाल उद्योग के शीर्ष नेताओं ने कौशल विकास को बढ़ावा देने की नीतियों पर चर्चा की। कार्यक्रम में यह उभरकर आया कि देश में 20 लाख चिकित्सकों की कमी है।
नैटहेल्थ के महासचिव अंजन बोस ने कहा, “कौशल अंतराल देश की आर्थिक वृद्धि के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है और रोजगार के लिए अवसरों को सीमित कर रहा है। वर्तमान में, भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में लगभग 20 लाख डॉक्टरों और 40 लाख नर्सो की कमी है। देश में चिकित्सक और जनसंख्या का अनुपात डरावना है, जो प्रति 1000 जनसंख्या पर 0.65 चिकित्सक है। यह डब्ल्यूएचओ के मानदंड 2.5 प्रति 1000 के सापेक्ष से भी काफी कम है।”
उन्होंने कहा, “प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की संख्या अपर्याप्त है। आठ फीसदी केंद्रों में चिकित्सक या मेडिकल स्टाफ नहीं हैं, 39 फीसदी में प्रयोगशाला तकनीशियन नहीं हैं और 18 फीसदी पीएचसी में फार्मासिस्ट भी नहीं हैं। चिकित्सा कर्मचारियों की कमी के बावजूद, उपयोग की कमी की समस्या मौजूद है। हास्यास्पद रूप से, लगभग 50 फीसदी मौजूदा चिकित्सा कार्यबल प्रैक्टिस नहीं करता है।”
नैटहेल्थ के अध्यक्ष सुशोभन दासगुप्ता ने कहा, “भारतीय स्वास्थ्य देखभाल में कौशल और हुनर विकास का सक्रिय हिस्सा बनने के लिए ई-रिटेलरों सहित चिकित्सा संस्थानों, पेशेवर संस्थाओं, उद्योग निकायों, सरकारी एजेंसियों और तकनीकी आपूर्तिकर्ताओं का एक सामूहिक दायित्व है।
स्वास्थ्य और पारिवारिक कल्याण मंत्रालय के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान द्वारा किए गए एक अध्ययन में खोजों के अनुसार, “विभिन्न स्वास्थ्य कार्यबल श्रेणियों में कुल कौशल अंतराल लगभग 97.9 फीसदी है। केवल रेडियोग्राफी और इमेजिंग इस अंतराल के 88.7 फीसदी भाग के लिए उत्तरदायी है जिससे चिकित्सा प्रयोगशाला तकनीशियों की भारी कमी हो रही है।”