इलाहाबाद। नवसंवत्सर के साथ मां शक्ति की आराधना पर्व नवरात्र का आरंभ होगा। भक्तों का कल्याण करने इस बार मां गज पर सवार होकर आएंगी और शेर से वापस होंगी। यम-नियम से मां की स्तुति करना साधक के लिए अत्यंत कल्याणकारी होगा। नवसंवत्सर का राजा गुरु एवं मंत्री शनि है, यह मिलन वाक, विद्या के लिए संजीवनी का कार्य करेगा। गुरुवार से आरंभ हो रही नवरात्र पूरे नौ दिनों की होगी। नवमी शुक्रवार को मनाई जाएगी।
श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी के मुताबिक नवसंवत्सर पर नवरात्र के साथ नक्षत्र में प्रथम अश्िर्र्वन, योग में प्रथम विषकुंभ व करण में प्रथम बव का भी आरंभ होगा। एक ही दिन में सबका आरंभ होना अत्यंत अद्भूत संयोग है। ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय के अनुसार चैत्रशुक्ल प्रतिपदा संवत 2070 (पराभव नाम) से नवरात्र शुरू होगी। इस दिन मंगल, बुध व सूर्य मीन राशि, चंद्रमा मेष, वृहस्पति वृष, शुक्र मेष के साथ शनि एवं राहु तुला राशि में रहेंगे। धार्मिक अनुष्ठान आरंभ करने के लिए यह सबसे सुखद योग है।
देवी के नौ रूपों का महत्व-
भारतीय विद्या भवन के निदेशक धर्माचार्य डॉ. रामनरेश त्रिपाठी बताते हैं कि नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री के स्वरूप का पूजन होगा। मां शक्ति की उपासना का यह अति प्राचीन परंपरा है। नौ की संख्या पूर्ण ब्रह्म का प्रतीक है। इसमें 360 का नौ से भाग देने पर 40 शेष बचता है। वहीं 40 की संख्या तांत्रिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इसे मंडल भी कहते हैं। इसमें शून्य का विनियोग कर देने पर चार की संख्या शेष रह जाती है। जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चार पुरुषार्थो का प्रतीक है। इसमें चैत्र, आषाढ़, अश्िर्र्वन व माघ में नवरात्र का पर्व मनाने का विधान है। इसमें भी अर्थ का धर्म और काम का मोक्ष में विनियोग कर देने से दो नवरात्र शेष रह जाती हैं। जो वासंतिक एवं शारदीय नवरात्रि के नाम से जानी जाती है।
प्रकृति से होता है जुड़ाव-
ज्योतिर्विद वंदना त्रिपाठी बतातीं हैं नवरात्रों का ऋतुओं की दृष्टि से विशेष महत्व है। ऋतु के क्रम में आराधना, उपासना, उपवास आदि करने से मनुष्य को शारीरिक व मानसिक शक्ति मिलती है। वासंतिक एवं शारदीय नवरात्र पर ऋतुओं का भी परिवर्तन होता है, जिसका वातावरण पर असर पड़ता है। इसमें नवचंडी, सहस्त्रचंडी, सतचंडी, लक्ष्यचंडी यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत कल्याणकारी होता है, क्योंकि साधक का अध्यात्म के साथ प्रकृति से जुड़ाव भी होता है।
कलश में समाहित है सृष्टि
परिवर्तन मानव विकास संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. बिपिन पांडेय बताते हैं कि कलश स्थापन के बिन मां भगवती की उपासना अधूरी रहती है। व्रती साधकों के साथ हर भक्त को पूजन स्थल पर कलश की स्थापना करनी चाहिए, कलश में संपूर्ण सृष्टि समाहित होती है। डॉ. पांडेय के मुताबिक कलश की स्थापना मांगलिक, ब्रंांड व सृष्टि का प्रतीक है। इसमें ब्रंा, विष्णु, महेश, सभी देवताओं चर्तुवेद, जल तत्व तथा पृथ्वी का वास होता है। कलश पर रखे जाने वाला आम्र पल्लव प्रकृति का प्रतीक है। शुद्ध मिट्टी पृथ्वी तत्व व अग्नि सोमात्मक तत्व है। सोम औषधियों का स्वामी है और उसी से जीवन है। यह औषधियां आयु वर्धक है।
पाठ करना आवश्यक-
मां शक्ति की उपासना में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अनिवार्य होता है। दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं। अगर कोई इसे पूरा नहीं कर सकता तो पंचम और 11 वें अध्याय का पाठ करके मां भगवती की स्तुति करें।