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 कटे पैर में लाठी बांध हल जोत रहा देवराज | dharmpath.com

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कटे पैर में लाठी बांध हल जोत रहा देवराज

October 10, 2015 9:30 am by: Category: भारत Comments Off on कटे पैर में लाठी बांध हल जोत रहा देवराज A+ / A-

Banda Photoबांदा (उप्र), 10 अक्टूबर (आईएएनएस)। 

‘हिम्मत बुलंद हो तो खुदा भी मदद करता है’, यह कहवत बबेरू क्षेत्र के पतवन गांव के मजरे एमपी का पुरवा निवासी किसान देवराज यादव चरितार्थ कर रहा है। करीब 40 साल पहले डॉक्टरों ने उसका दाहिना पैर काट दिया था, उसने हिम्मत नहीं हारी और पैर में बांस की लाठी बांध कर बखूबी खेती-किसानी के काम को अंजाम दे रहा है।

बांदा (उप्र), 10 अक्टूबर (आईएएनएस)। ‘हिम्मत बुलंद हो तो खुदा भी मदद करता है’, यह कहवत बबेरू क्षेत्र के पतवन गांव के मजरे एमपी का पुरवा निवासी किसान देवराज यादव चरितार्थ कर रहा है। करीब 40 साल पहले डॉक्टरों ने उसका दाहिना पैर काट दिया था, उसने हिम्मत नहीं हारी और पैर में बांस की लाठी बांध कर बखूबी खेती-किसानी के काम को अंजाम दे रहा है।

पतवन गांव के मजरे एमपी का पुरवा में चार बीघे कृषि भूमि का मालिक किसान देवराज यादव (64) जहां विकलांगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं, वहीं बर्बाद फसल और सूखे के दंश से परेशान आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए सबक भी हैं। इनका दाहिना पैर करीब 40 साल पहले डॉक्टरों ने जांघ से काट दिया था। परिवार में दो वक्त की रोटी का संकट आया तो हिम्मत नहीं हारी और कटे पैर में बांस की लाठी बांधकर वह अन्य किसानों की भांति खेत में हल जोत रहा है।

बकौल देवराज, “करीब 40 साल पहले खेत में हल चलाते समय बैल के लात मारने से लगी चोट से दाहिने पैर में सड़न पैदा हो गई थी। कानपुर के डॉक्टरों ने जांघ के पास से उसका पैर काट कर अलग कर दिया।”

वह बताता है, “एक दिन खेत की मेड़ पर बैठकर खेती करने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक लाठी बांधकर हल चलाने का प्रयास किया। कई बार गिरने, चोट खाने के बाद अब अन्य किसानों की भांति अपने खेत में हल चलाकर परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेता हूं। उसके पास सरकारी कर्ज नहीं है, पर गांव के साहूकारों का 25 हजार रुपये पांच रुपये प्रति सैकड़ा ब्याज की दर वाला कर्ज है..फिर भी भरोसा है कि हिम्मत न हारने वाले की ऊपर वाला भी मदद करता है, आत्महत्या करना बुजदिलों का काम है।”

उसकी पत्नी रानी बताती है कि उसके पति अब एक पैर व लाठी के सहारे रोजमर्रा के सारे काम कर लेते हैं। चार बीघे की फसल से उनके परिवार का आराम से बसर हो जाता है। सरकारी मदद के नाम पर उसके पति को सिर्फ 500 रुपये प्रति माह पेंशन मिल रही है।

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