श्रीकेदारनाथका मंदिर 3593फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इसकी कल्पना आज भी नहीं की जा सकती है! मंदिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगोंमें से एक माना जाता है।
यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर प्लेटफार्म पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हां ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। मंदिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगोंमें से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं।
केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं। शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का हिस्सा काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथका मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथमें, नाभि मदमदेश्वरमें और जटा कल्पेश्वरमें प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदारकहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं। दर्शन का समय केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 7:00 बजे खुलता है। दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है। पांच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है। रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढंक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है। ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को उखीमठ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहां भी रावल जी करते हैं। केदारनाथ में जनता शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करती है और उसके अनुसार ही वह मन्दिर की पूजा-आरती कराती है अथवा भोग-प्रसाद ग्रहण करती है। पूजा का क्रम- भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। मन्दिर-समिति द्वारा केदारनाथ मन्दिर में पूजा कराने हेतु जनता से जो दक्षिणा लिया जाता है, उसमें समिति समय-समय पर परिर्वतन भी करती है।