भोपाल, 8 सितम्बर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में होने जा रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन से साहित्यकारों को दूर रखे जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पद्मश्री से लेकर राष्ट्रीय स्तर के साहित्य पुरस्कार पा चुके साहित्यकार भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर सरकार का यह बर्ताव क्यों और किस वजह से है।
भोपाल, 8 सितम्बर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में होने जा रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन से साहित्यकारों को दूर रखे जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पद्मश्री से लेकर राष्ट्रीय स्तर के साहित्य पुरस्कार पा चुके साहित्यकार भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर सरकार का यह बर्ताव क्यों और किस वजह से है।
राजधानी भोपाल में 10 से 12 सितम्बर तक विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। आयोजकों के अनुसार, इसमें लगभग पांच हजार विद्वानों के आने की संभावना है। देश और दुनिया में इसके लिए निमंत्रण भी भेजे जा चुके हैं, लेकिन भोपाल निवासी पद्मश्री और साहित्य सम्मान प्राप्त विद्वानों की अब तक कोई खबर नहीं ली गई है। उन्हें न तो तैयारियों के दौरान विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया है और न ही उन्हें आमंत्रण देना ही मुनासिब समझा गया है।
साहित्यकार राम प्रकाश त्रिपाठी ने आईएएनएस से कहा, “केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा जोर अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) को लुभाने पर है।”
सम्मेलन में राजनीतिक दखलंदाजी के सवाल पर उन्होंने कहा, “शिक्षा, भाषा सब कुछ राजनीति नियोजित होता है, लेकिन यह आयोजन संकीर्णता वाला है। भाषा का अहम घटक साहित्य होता है, लेकिन इस सम्मेलन से साहित्य को ही दूर रखा जा रहा है।”
भोपाल में साहित्यकारों और रचनाकारों की बस्ती ‘निराला नगर’ है। यहां ध्रुव शुक्ल, रामप्रकाश त्रिपाठी, राजेश जोशी, मेहरुन्निशा परवेज, राजेश शाह, विजय बहादुर जैसी नामचीन साहित्यिक हस्तियां रहती हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अब तक सम्मेलन का बुलावा नहीं मिला है।
वरिष्ठ साहित्यकार ध्रुव शुक्ल ने आईएएनएस से कहा, “राजनीति ने कभी भी भाषा को ताकतवर नहीं बनाया है। किसी भाषा की ताकत साहित्य होता है। किसी भी शासन ने भाषा को ताकत नहीं दी है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी शासन और राजनीति का भाषा में दखल बढ़ा है, उस भाषा में संवाद ही कम हुआ है और भाषा के नाम पर विवाद हुए हैं।”
राज्य के अन्य इलाकों के साहित्यकारों ने भी सम्मेलन का बुलावा न मिलने पर नाराजगी जताई है।
सम्मेलन के आयोजन में अहम भूमिका निभा रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक पदाधिकारी ने साहित्यकारों की उपेक्षा के सवाल पर नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि यह सम्मेलन साहित्यकारों का नहीं, बल्कि ‘विद्वानों’ का है।