रेटिंग एजेंसी ने कहा कि आर्थिक सुस्ती की वजह से पूंजी की गुणवत्ता और आय वृद्धि दर में गिरावट कायम रह सकती है। इसके अलावा पहले मुख्य ब्याज दरों में की गई कटौती की वजह से शु़द्ध ब्याज मार्जिन पर भी दबाव बना रहेगा।
नवंबर 2014 के बाद पांच बार ब्याज दरों में की गई कटौती का प्रभाव आने वाले महीनों में कायम रहने की संभावना है।
परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में आई कमी जैसे गैर निष्पादित ऋण (एनपीएल) की वजह से लाभ में कमाने की क्षमता में कमी आएगी। फिच ने कहा है कि पूरे वर्ष के लिए बैंकों का एनपीएल अनुपात अधिक रहने की संभावना है।
शेयर बाजारों में आई गिरावट से बैंकों की शुल्क से होने वाली आय घट सकती है, क्योंकि जुलाई के बाद से बाजार की गिरावट के कारण यह धारणा बनी है कि आर्थिक सुस्ती के कारण निवेश की मांग घट सकती है।
फिच ने कहा कि घरेलू आर्थिक सुस्ती के कारण बैंक विदेश में कारोबार का विस्तार करने पर अधिक ध्यान दे सकते हैं।
फिच ने कहा कि आर्थिक विकास को संबल देने के लिए चीन ने ब्याज दर, आवश्यक आरक्षी अनुपात (आरआरआर) घटा दी है और 75 फीसदी ऋण-जमा अनुपात की बाध्यता खत्म कर दी है। इससे बैंकों पर दबाव में कुछ हद तक कमी आ सकती है, लेकिन निकट भविष्य में आय कम रहने के रुझान में परिवर्तन आने की संभावना नहीं है।