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 घोर पूँजीवाद का परिणाम है गुजरात आन्दोलन | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

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घोर पूँजीवाद का परिणाम है गुजरात आन्दोलन

August 29, 2015 8:57 am by: Category: ख़बरें अख़बारों-वेब से Comments Off on घोर पूँजीवाद का परिणाम है गुजरात आन्दोलन A+ / A-

hardikप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में अपना घर छोड़े अभी डेढ़ साल भी नहीं हुए कि राज्य पर उनकी पकड़ ढीली होती दिखाई देती है.

अब तक ये समझा जाता रहा था कि उनकी और अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी को ललकारने वाला राज्य में फ़िलहाल कोई नेता नहीं है.

लेकिन उन्हें चुनौती देने वाला एक गुमनाम युवा निकला और वो भी अपने ही ख़ेमे से.

हार्दिक पटेल नाम के 22 साल के इस युवा ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नींदें ज़रूर उड़ा दी होंगी. इन दोनों नेताओं के ऊंचे क़द और 56 इंच सीने पर सवाल भी उठा दिए हैं.

मोदी और शाह हरगिज़ ये नहीं चाह रहे होंगे कि बिहार विधान सभा चुनाव से ठीक पहले गुजरात में किसी तरह की सियासी अशांति पनपे.

वो कमज़ोर नेता के रूप में नहीं नज़र आना चाहते. अगर बात गुजरात से बाहर की होती तो उनकी साख पर अधिक फ़र्क़ नहीं पड़ता.

बात उनके अपने राज्य की है जहाँ उन्हें क़द्दावर नेता के रूप में देखा जाता है.

लेकिन उनकी मुश्किल ये है कि आंदोलन ज़ोर पकड़ चूका है और पटेलों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी आंदोलन जारी रहेगा.

पटेल समुदाय आर्थिक रूप से मज़बूत तो है ही राज्य में सियासी ऐतबार से भी इसका दबदबा ज़बरदस्त है.

किसी को सही से नहीं मालूम कि उनकी आबादी कितनी है. राज्य के पत्रकारों के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 12 से 18 प्रतिशत हिस्सा पटेल समुदाय है. ये एकजुट हैं.

नरेंद्र मोदी का सियासी उदय और पटेलों का आर्थिक उदय लगभग साथ-साथ हुआ. दोनों ने हमेशा एक दूसरे का साथ दिया है.

आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे पटेल समुदाय का नेतृत्व करने वाले युवा हार्दिक पटेल के पिता भाजपा के सदस्य हैं.

समुदाय के बड़े बुज़ुर्ग अब भी भाजपा और मोदी के साथ भले ही हों इसकी नई पीढ़ी की उमंगें पार्टी से मेल नहीं खातीं.

ये आंदोलन अचानक क्यों शुरू हुआ इसका जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं लेकिन इसकी तारें सीधे तौर पर मिलती हैं राज्य के घोर पूंजीवाद या क्रोनी कैपिटलिज्म से जिसकी शुरुआत का सेहरा मोदी के नाम जाता है.

ख़ुशहाल पटेल समुदाय लघु और मध्यम व्यापार में राज्य में सब से आगे है.

अपनी पूँजी का एक बड़ा हिस्सा समुदाय ने लघु और मध्यम वर्ग के धंधों में निवेश किया है.

पहले नरेंद्र मोदी और अब मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल पर इस समुदाय को नज़र अंदाज़ करने का इलज़ाम लगाया जाता रहा है

लेकिन आरक्षण को लेकर आंदोलन अब सियासी रंग में बदलता जा रहा है. आंदोलन का निशाना भाजपा तो है ही लेकिन पार्टी और सरकार के अंदर पटेल समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वालों पर अधिक है.

हार्दिक पटेल ने कहा है कि अगर सरकार ने उनकी मांग पूरी नहीं की तो 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका परिणाम पार्टी के लिए सही नहीं होगा.

देश की आज़ादी से 1980 के दशक की शुरुआत तक पटेल समुदाय ने कांग्रेस का साथ दिया था.

मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही पटेल समुदाय भाजपा से जुड़ गया था.

समुदाय का समर्थन बनाए रखना भाजपा और अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती होगी वरना समुदाय सालों से कमज़ोर पड़ी कांग्रेस पार्टी की झोली में कहीं वापस न चली जाए.

saabhar-bbc

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