जाटू लुहारी के निवासी यहां हर रोज धोक लगाने आते हैं। शुक्ल पक्ष की द्वादशी को इस मंदिर में विशेष धोक लगती है। श्रद्धालुओं का कहना है कि वर्तमान भौतिकतावादी दौर में हर रोज की भागमभाग भरी जिंदगी से कुछ क्षण आराम के मिलें और उन्हें बाबा जगन्नाथ मंदिर के परिसर में व्यतीत न किया जाए तो वह एक बड़ी भूल है।
बाबा जगन्नाथ मंदिर अपनी विविधताओं से ही विशिष्ट बना है। बाबा जगन्नाथ मंदिर के पास ही स्थित तालाब से मंदिर की शोभा और भी बढ़ी है। इस तालाब को बाबा जगन्नाथ का सरोवर कहा जाता है। वास्तव में बाबा जगन्नाथ सरोवर का विहंगम प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेता है। जाटू लुहारी के बुजुर्गो का कहना है कि बाबा जगन्नाथ का जन्म वर्ष 1160 में हुआ था। वे नाथ पंथी शिष्य परंपरा से जुड़े रहे। बाबा जाटू लुहारी के ग्राम देवता हैं, इसलिए फाग और गोगा नवमी के दिन पूरा गांव मेले का आयोजन करता है। बाबा जगन्नाथ के शिष्य बाबा मंगणीनाथ तथा मामकौर रहे हैं। बाबा मंगणीनाथ ने मंदिर के साथ ही जोहड़ की खुदाई की थी जो अब विशाल तालाब का रूप ले चुका है।श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा जगन्नाथ एवं एक अन्य महंत आगरा मठ से भ्रमण करते हुए रोहतक के गांव सामाणपुरी में आए थे। बाबा जगन्नाथ वहां से जाटू लुहारी आ गए। तब यहां गांव अस्तित्व में नहीं था। इनके शिष्य बाबा मंगणीनाथ और शिष्या मामकौर ने इनकी सेवा की और बाद में बाबा मंगणीनाथ ने स्वयं तालाब और एक कुएं की खुदाई की। धीरे-धीरे यहां का वातावरण धार्मिक हो गया। बाबा जगन्नाथ के भक्त के.सी. शर्मा ने मंदिर के पुनरुद्धार, तालाब के सौंदर्यीकरण एवं वृक्षारोपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुरुक्षेत्र में स्थित ज्योतिसर की तर्ज पर तालाब को पक्का करवाया गया है। अब इस तालाब की शोभा देखते ही बनती है।
बाबा जगन्नाथ मंदिर में जाटू लुहारी के आसपास के गांवों से भी श्रद्धालु धोक लगाने आते हैं। बाबा जगन्नाथ के प्रति जाटू लुहारी के अलावा मंढाणा, पुर, बवानी खेड़ा व प्रेमनगर आदि गांवों के निवासियों की भी अगाध आस्था है। श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा जगन्नाथ उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूर्ण करते हैं। यही कारण है कि उनका बाबा के प्रति अटूट विश्वास है।